सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर,key Line Times
वेसू सूरत (गुजरात),युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की सिल्क व डायमंड सिटी में आयोजित 2024 का भव्य चातुर्मास अब सुसंपन्नता की ओर है 16 नवंबर को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी जनकल्याण के लिए पुनः गतिमान होंगे। आयोजनों, व्यवस्थाओं तथा घोषणाओं की दृष्टि से सूरत शहर चतुर्मास मानों अद्वितीय रहा। सूरत शहर में पहली बार आयारो आगम के माध्यम पावन प्रवचन की अनवरत श्रृंखला रही, तो वहीं तीन भव्य दीक्षा समारोह भी आयोजित हुए। ज्ञानाराधना, दर्शनाराधना के क्रम में श्रावक समाज ने बढ़चढकर भाग लिया। धार्मिक-आध्यात्मिक अनुष्ठान अथवा धार्मिक गुरुओं आदि से सस्नेह मिलन भी आचार्यश्री की यात्रा के अहम आयाम सद्भावना को प्रदर्शित करने वाला रहा है।
चतुर्मास व्यवस्था समिति के सुन्दर व सुव्यवस्थित व्यवस्थाओं की सराहना भी लोगों के मध्य होती रही। व्यवस्था समिति के कार्यकार्ताओं की भावुक प्रस्तुतियां अब विदाई के क्षण की निकटता को दर्शा रही हैं, किन्तु निर्मोहता के साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गतिमान होंगे तो गुजरात के अनेक क्षेत्रों को पावन बनाएंगे। गुरुदेव की सन्निधि में चातुर्मासिक चतुर्दशी पर हाजरी का भी क्रम रहा। जिसमें गुरुदेव ने आचार्य श्री भिक्षु द्वारा लिखित मर्यादाओं की वाचना कर धर्मसंघ को स्मारणा कराई।
मंगल प्रवचन में देशना देते हुए आचार्य श्री ने कहा – धर्म को उत्कृष्ट मंगल कहा गया है। संसार में सभी मंगल की कामना करते हैं। इसके लिए व्यक्ति शुभ पदार्थों व शुभ समय का भी ध्यान रखता है। यात्रा पर जाने से पूर्व कई मंगल पाठ का श्रवण करते है। यह सभी मंगल के रूप है। किन्तु जो परम मंगल है, उत्कृष्ट है वह धर्म है। मंगल चाहते हैं तो धर्म को आत्मा के साथ आत्मसात कर लो। कोई पूछले कौनसा धर्म ? तो न जैन-धर्म, न महावीर व ऋषभ का नाम। धर्म का सार है अहिंसा, संयम व तप यह धर्म है। अहिंसा की साधना, संयम की अनुपालना व तप का अनुशीलन कोई भी करे आत्मिक लाभ भी प्राप्त होगा ही। गुड़ कोई भी खाए, मूंह मीठा ही होगा। अहिंसा, संयम व तप ये तीनों धर्म के हेतु हैं। इनकी उपासना कोई भी करे उन्हें लाभ होगा ही, मैं करूं या तुम धर्म फलदायी होता है। इन तीनों रत्नों की जो भी आराधना करता है उसका कल्याण होता है व वह मोक्ष मार्ग की ओर प्रस्थान करता है।
गुरुदेव ने आगे फरमाया कि साधु संतों के प्रवास के दो भाग होते है एक चातुर्मास-काल व दूसरा शेष- काल। सूरत का चातुर्मास अब सम्पन्नता की ओर है। यह भी एक साधना चर्या का एक अंग है। कितने चारित्रत्माओं का एक साथ प्रवास होन व एक साथ रहना यहां हुआ। साध्वी धैर्यप्रभाजी का तपस्या के दौरान काल-धर्म को प्राप्त करना ये चातुर्मास की विरल बात है। मुख्यमुनि द्वारा रात्रिकाल में रामायण वाचन का भी क्रम रहा। चातुर्मास में व्यवस्था पक्ष में व्यवस्था समिति का व्यवस्थित कार्य प्रतीत हुआ। विभागों का पूरा एक व्यवस्था तंत्र नजर आया। परस्पर सामंजस्य से कार्य सुचारू हो सकता है। साथ ही भगवान महावीर यूनिवर्सिटी के शिक्षालय जैसा स्थान प्राप्त हुआ। किसी यूनिवर्सिटी में चातुर्मास का यह पहला ही अवसर रहा।
कार्यक्रम में मुख्यमुनि श्री महावीर कुमार जी, साध्वी प्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी का सारगर्भित उद्बोधन हुआ। मुनि श्री उदित कुमार जी ने विचार व्यक्त किए।
मंगल भावना के क्रम में चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा, जिला शिक्षा अधिकारी श्री भागीरथ परमार, श्री प्रताप दूगड़, इंदौर से श्री सुरेश कोठारी, श्री गौतम कोठारी, संजय जी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल, ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी ने किशोर मंडल, टी टी एफ के सदस्य गण ने पृथक पृथक गीतों की प्रस्तुति दी।
आज के कार्यक्रम में मध्य प्रदेश वासियों पर कृपा करते हुए आचार्य श्री ने सन् 2031 में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अनुकूलता के अनुसार 101 दिन का प्रवास मध्य प्रदेश में कराने की घोषणा की साथ ही इंदौर में 60 रात्रि प्रवास की घोषणा की।