वेसु, (सुरत गुजरात),शुक्रवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को दुनिया में मनुष्यों के लिए दुःख भी होता है और सुख भी होता है। दुःख जन्म के रूप में हो सकता है, बुढापे के रूप में हो सकता है, बीमारी के रूप में हो सकता है, मृत्यु के संदर्भ में हो सकता है। शारीरिक और मानसिक रूप में भी दुःख हो सकता है। शारीरिक दुःख को जरा और मानसिक दुःख को शोक कहते हैं। जरा और शोक दो प्रकार के दुःख मनुष्यों के सामने आते हैं।
प्रश्न हो सकता है कि आदमी दुःख से मुक्त कैसे हो? दुःखमुक्ति का मार्ग गणधर आचार्य आदि अपने धर्मकथा और प्रवचन आदि के माध्यम से मानवों को दुःख मुक्ति का मार्ग बताते हैं। दुःख से मुक्ति के लिए आचारांगभाष्य में चार बातें बताई गई हैं। बंध है तो दुःख है। बंध पुण्य और पाप के रूप में भी होता है। आश्रव को बंध का कारण बताया गया है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो कर्मों का कर्ता आश्रव ही होता है। बंधन से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है। मोक्ष का हेतु संवर होता है। संवर और निर्जरा को मोक्ष के कारण है।
मनुष्यों के दुःख से मुक्ति का उपाय कुशलजन बताते हैं। प्रवचन करने वाले लोगों को दुःख से मुक्ति का मार्ग बताते हैं। प्रवचन करना भी सेवा का कार्य हैं। यहां भी प्रवचन होता है और बहिर्विहार में रहने वाले साधु-साध्वियां भी अपने ढंग से प्रवचन आदि का प्रयास करते हैं। प्रवचन करने में जो कुशल होते हैं, ज्ञानी और त्यागी हैं वे दुःख मुक्ति का उपाय बताते हैं। संवर और निर्जरा दुःख मुक्ति का उपाय है।
आदमी के चिंतन की धारा बदल जाए तो दुःखानुभूति दूर हो सकती है। एक चिंतन से आदमी दुःखी और एक चिंतन से आदमी सुखी हो सकता है। बंध दुःख है तो दुःख से मुक्ति का उपाय भी है। आदमी को अपने चिंतन को प्रशस्त कर जीवन संवर और निर्जरा के माध्यम से दुःखों से मुक्त बनने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त उत्तर कर्नाटक के ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी काफी संख्या में आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे हुए थे। उत्तर कर्नाटक आंचलिक सभा के अध्यक्ष श्री राजेन्द्र जीरावला ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तदुपरान्त ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को विशेष आशीर्वाद प्रदान किया।