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Home आचार्यश्री महाश्रमणजी ने स्वयं के कल्याण के साथ दूसरों का कल्याण करने को किया अभिप्रेरित….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , भारत की प्राचीन व्यापारिक नगरी, डायमण्ड सिटि, सिल्क सिटि के रूप में विख्यात सूरत शहर वर्तमान में आध्यात्मिक नगरी बनी हुई है। ताप्ती नदी के तट पर स्थित सूरत में आध्यात्मिकता की अलख जगा रहे हैं जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण। उनके दर्शन तथा उनकी अमृतवाणी का श्रवण करने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालुओं के पहुंचने का क्रम निरंतर जारी है। सूरतवासियों की ओर से की गई विशाल और भव्य चातुर्मासिक व्यवस्थाएं बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को आह्लादित करती हैं। पर्युषण के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में देश के विभिन्न हिस्सों से लोग संघबद्ध रूप में दर्शनार्थ उपस्थित हो रहे हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी की प्रशंसा भी होती है। जो आदमी अच्छा कार्य करता है, वह प्रशंसा का पात्र बन जाता है। वह वीर प्रशंसनीय होता है जो बंधे हुए व्यक्तियों को मुक्त कर देता है। अनेक संदर्भों में आदमी वीर हो सकता है। निर्भीक होकर मोर्चा संभालने वाला सैनिक भी वीर होता है, साधुता की दीक्षा स्वीकार करने वाला भी वीर होता है। मनुष्य जन्म, श्रुति धर्म, श्रद्धावान हो जाना और संयमवीर्य हो जाना कठिन बताया गया है। वह आदमी वीर होता है, जो संयम के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करता है। साधुता का स्वीकरण भी मानों एक धर्मयुद्ध है। भौतिकता की चकाचौंध को छोड़कर संयम की साधना और आत्मा के कल्याण के पथ पर आगे बढ़ना भी बहुत बड़ी बात होती है। यहां धर्मयुद्ध होता है, जिसमें साधक अपनी कामनाओं, वासनाओं, कषायों पर विजय प्राप्त करने हुए अपने आत्मा पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह संग्राम में विजयी होने से वाले भी बड़ा योद्धा होता है, महावीर होता है। अपनी आत्मा को काम, क्रोध, लोभ व मोह से अपनी आत्मा को मुक्त कराने वाला वीर होता है और वह प्रशंसनीय भी होता है। जो दूसरों की आत्मा को पापों से मुक्त कराता है, स्वयं तरते हुए दूसरों को तारने वाला प्रशंसनीय होता है। युगप्रधान आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित जनता को साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी मंगल प्रेरणा प्रदान की। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ राणावास संस्था के अध्यक्ष श्री मोहनलाल गादिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। संस्था से जुड़ी छात्राओं ने गीत का संगान किया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने आशीष प्रदान करते हुए कहा कि राणावास में परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी का चतुर्मास हुआ था। वहां इतना शिक्षा का कार्य हो रहा है। वहां खूब अच्छा होता रहे।
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Previous: शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात), जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में रविवार को केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री तथा भाजपा के गुजरात राज्य प्रदेशाध्यक्ष श्री सी.आर. पाटिल उपस्थित हुए। उन्होंने आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त आचार्यश्री की मंगलवाणी श्रवण भी करने के साथ ही अपनी भावनाओं को भी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन पाथेय भी प्रदान किया। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि काम का अतिक्रमण करना मुश्किल होता है। काम शब्द का प्रयोग अनेक प्रकार के कार्यों के संदर्भ में होता है तो काम एक अर्थ कामना के संदर्भ में भी होता है। इन्द्रिय विषय के संदर्भ में भी काम शब्द का प्रयोग होता है। यहां कामना के संदर्भ में प्रयोग किया गया है। कामना होती है तो आदमी पदार्थों का संग्रह करता है, पदार्थों का परिग्रह रखता है। इच्छा काम के अंतर्गत सोना, चांदी आदि पदार्थों को प्राप्त करना, धन, मकान, पदवी आदि आते हैं। दूसरा बताया गया मदन काम। शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श आदि की कामना मदन काम है। काम अनंतकाल से प्राणी के भीतर रहती है। इसलिए इस काम का पार पाना मुश्किल भी होता है। इच्छाओं को कम करना, लोभ का क्षय तथा संतोष को धारण करना बड़ा कठिन काम होता है। लोभ को पाप का बाप कहा जाता है। कितने-कितने पापों के जड़ में लोभ ही होता है। लोभ के कारण हिंसा में जा सकता है। लोभ के कारण आदमी झूठ बोल सकता है, छल-कपट कर सकता है। यहां तक कि लोभ के कारण आदमी किसी की हिंसा भी कर सकता है। इस कारण काम दुःख का भी बहुत बड़ा कारण है। कामनुवृद्धि के कारण शरीर और मन दोनों को दुःखी बनाने वाला हो सकता है। जो प्राणी वीतराग बन जाता है, वह दुःख का पार पा सकता है। काम अध्यात्म की साधना में परित्याज्य होता है। साधना की गहराई में जाने से कामनाओं का पार भी पा सकता है। आदमी को अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए। भौतिक इच्छाओं की सीमा रखनी चाहिए। स्वदार, भोजन व धन में संतोष रखने का प्रयास करना चाहिए तथा अध्ययन, जप और दान में संतोष नहीं करना चाहिए। आज आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री व गुजरात भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष श्री सी.आर. पाटिल पहुंचे। उन्होंने आचार्यश्री को वंदन कर आशीष प्राप्त करने के उपरान्त उन्होंने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि हमारे आंगन में पूज्य संत आचार्यश्री महाश्रमणजी का पावन चतुर्मास हो रहा है, यह हम सभी के लिए परम सौभाग्य की बात है। आपके आगमन से यहां की जनता आह्लादित है। मैंने आपकी कीर्ति और ख्याति तो बहुत सुन रखी थी आज दर्शन का अवसर प्राप्त हुआ है। आपकी विकट पदयात्रा और जनकल्याण का जो कार्य किया है, वह अद्वितीय है। आपने अभी दान में संतोष नहीं करने की जो प्रेरणा दी है, वह भी समाज के लिए कल्याणकारी है। आप तो लोगों को नीति पर चलने का राह भी दिखाते हैं। राजनीति में तो लोगों को सेवा की भावना से आना चाहिए। मेरा मानना है कि जो आदमी धर्म को नहीं मानता, वह अनीति का कार्य करने में डरेगा नहीं, और धर्म में आस्था रखने वाला होगा तो वह नीति पर चलेगा, जिससे देश और समाज का भला हो सकेगा। आपने नशामुक्ति के जन-जन को उत्प्रेरित किया है। ऐसे महात्मा जो समाज के हित के विषय में सोचते हैं। मैं ऐसे आचार्यश्री को बारम्बार प्रणाम करता हूं। आचार्यश्री ने उन्हें आशीष प्रदान करते हुए कहा कि आज जलशक्ति मंत्रीजी का आना हुआ है। जल की बात है तो जल को रत्न की संज्ञा प्रदान की गयी है। धरती पर तीन रत्न है- जल, अन्न और सुभाषित। जैनिज्म में यहां तक कहा गया है कि जल भी सजीव है, इसलिए जल का फालतू व्यय नहीं करना चाहिए, ऐसा अहिंसा की दृष्टि से भी होता है। हम तो सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की प्रेरणा देते हैं। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत के छोटे-छोटे नियमों से लोगों को सत्पथ की प्रेरणा दी। राजनीति में खूब अच्छी नैतिकता बनी रहे।Next: साउथ हावड़ा मे हुवा पूर्वांचल स्तरीय युवा सम्मेलन का भव्य आयोजन…सुरेंद्र मुनोत ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Timea साउथ हावड़ा, युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी ठाणा- 3 के सान्निध्य में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के तत्वावधान में पूर्वांचल स्तरीय युवा सम्मेलन का आयोजन प्रेक्षा विहार में तेरापंथ युवक परिषद् साउथ हावड़ा द्वारा किया गया। सम्मेलन में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष रमेश डागा, महामंत्री अमित नाहटा, मुख्य वक्ता कल्याण परिषद के संयोजक के. सी. जैन मुख्य अतिथि आई.ए.एस. अफिसर वैभव चैधरी, अ.भा. ते.यु.प. के पूर्व अध्यक्ष रतनजी दुगड़, महासभा के पूर्व अध्यक्ष सुरेश जी गोयल, अ.भा.यु.प.के पूर्व सहमंत्री सचेतक अनंत बागरेचा, कार्यकारिणी सदस्य जय चोरडिया,महाप्रज्ञ मेडिकल प्रभारी विकास बोथरा, भिक्षु दर्शन कार्यशाला प्रभारी सूर्यप्रकाश डागा, कार्यकारिणी सदस्य दीप पुगलिया, सुमित छाजेड़, राजीव बोथरा, आदि गणमान्य व्यक्ति विशेष रूप से उपस्थित थे। उद्घाटन सत्र में संगठन और युवा विषय पर उपस्थित युवाओं को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा- सामाजिक एवं धार्मिक चेतना के जागरण का एक सशक्त माध्यम है- संगठन । संगठन में शक्ति होती है। शक्ति-शक्ति को आकर्षित – करती है। शक्ति व दायित्व बोध के अभाव में अच्छे से अच्छा संगठन भी तिनके की तरह बिखर जाता है | उद्देश्य और दायित्व के साथ चलने वाला छोटे से छोटा संगठन भी आकाशव्यापी ऊँचाईयों को प्राप्त हो सकता है। गुरुदेव तुलसी की दूर दर्शिता, आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी एवं आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सिंचन से यह बहुत फली और फूली है। संगठन को शक्तिशाली बनाने के लिए समन, अप्रतिबद्ध व शांति साधक व्यक्तियों का होना बहुत जरुरी है। ‘मुनि श्री ने आगे कहा- युवा स्वर्ग की सच्ची अनुभूति है। युवा समाज का यथार्थ प्रतिबिम्ब है। युवा शक्ति का प्रतीक व ऊर्जा का पुंज है। युवा देश की तकदीर व तस्वीर है। युवा पराक्रम का प्रतीक होता है। वह अपने पुरुषार्थ व पराक्रम के द्वारा असंभव प्रतीत होने वाले कार्य को भी संभव बना देता है। युवा शब्द या अर्थ है वायु की तरह गतिशील होना। युवाओं को श्रद्वाशील विचारशील, सहनशील, कर्मशील व चरित्र शील होना चाहिए। सेवा, संस्कार व संगठन के माध्यम से सभी युवा धर्मसंघ की खूब सेवा करते रहें। इस अवसर पर मुनि श्री परमानंद जी ने कहा- संगठन में शक्ति होती है। सेवा, संस्कार के कार्य भी तभी हो सकेंगे जब युवा संगठित, और एकजुट होंगें। इस अवसर पर बाल मुनिश्री कुणाल कुमार जी ने सुमधुर गीत का संगान किया। कार्यक्रम उद्घाटन सत्र का प्रारंभ मुनि श्री के नमस्कार महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। शाखा परिषदों के अध्यक्ष मंत्रियों द्वारा विजय गीत का संगान किया गया। श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन कल्याण परिषद् के संयोजक के सी. जैन ने किया। अ.भा.ते.यु.प. के अध्यक्ष रमेशजी डागा ने युवा सम्मेलन के उद्घाटन की घोषणा की। स्वागत भाषण तेरापंथ युवक परिषद् साउथ हावड़ा के अध्यक्ष गगनदीप बैद ने किया। साउथ हावड़ा श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के सहमंत्री कपिल धारीवाल ने सभा की ओर से आगंतुकों का स्वागत करते हुए विचार-व्यक्त किये। राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेशजी डागा ने सेवा संस्कार व संगठन के बारे में जानकारी देते हुए संगठित रहते हुए संस्था के प्रति समर्पित रहकर कार्य करने का आहवान किया मुख्य वक्ता कल्याण परिषद के संयोजक के सी. जैन ने युवाओं को प्रकृति के नियमों व श्वास के प्रति जागरूक रहकर धर्मसंध की सेवा करने की बात कही। मुख्य अतिथि I.A.S. ऑफिसर वैभव चौधरी ने कहा- युवापीढ़ी अपने जीवन में धर्म एवं संघ को सुदृढ़ करें। सभी एकजुट होकर एक दूसरे को सहयोग करें। ते.यु.प. एवं किशोर मंडल के सदस्यों ने सुमधुर गीत का संगान किया। अतिथियों एवं प्रायोजको का ते.यु.प. द्वारा सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री परमानंद जी व मंत्री अमीत बैगवानी ने किया। द्वितीय सत्र संकल्प सत्र (हमारा संकल्प हमारे आयाम) में राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपने उदबोदन में कहा की 2016 से ही पूर्वांचल की सभी परिषदें अधिक सक्रियता के साथ कार्य कर रही है। आचार्य तुलसी की दूरगामी सोच थी की युवा कुछ भी कार्य कर सकता है । इस संस्था में कार्यकर्ताओं का निर्माण होता है। पूर्वांचल स्तरीय युवा सम्मेलन में भी युवक उपस्थित है सब क्वालिटी है और जो चाहते है की धर्म संघ का विकास हो। युवक परिषद एक मात्र संस्था है जिसके पास तीस आयाम है। अभातेयुप के पूर्व अध्यक्ष श्री रतन लाल दुगड़ ने बताया की जब परिषद का निर्माण हुआ तब आचार्य तुलसी से पूछा गया गुरुदेव हम क्या करें क्योंकि उस समय कोई कार्य करने को नही था और आज बोलते है हम क्या क्या करें। युवकों को अपने समय का नियोजन करना चाहिए। युवा सम्मेलन करने का उद्देश्य है की हम सब को एक दूसरे से प्रेरणा मिले। अभातेयुप संचेतक श्री अनंत बागरेचा , अभातेयुप सदस्य श्री विकास बोथरा, श्री सुमित छाजेड़,श्री दीप पुगलिया, श्री जय चोरड़िया, श्री राजीव बोथरा, श्री सूर्यप्रकाश डागा ने आयामों के विषय में जानकारी प्रदान की। अभातेयुप महामंत्री श्री अमित नाहटा ने कहा की हमारा युवक परिषद से जुड़ने का लक्ष्य है की हम अपने जीवन को और अच्छा कैसे बना सकें। हमारे अंदर बोलने का विकास हो। वर्तमान में फास्ट मनी का चलन आया जिससे हमारे युवकों को बचना चाहिए। छोटे बच्चों को नशे से बचाना है, बिज़नेस का ट्रेंड चेंज हो रहा है हमारे बिज़नेस को एक्सपेंड करने का समय है। स्वस्थ रहे , पैसा कमाएं, शांति का विकास करें आदि अनेक बातो पर प्रकाश डाला। तृतीय सत्र ऊर्जा सत्र में परिषद के उपाध्यक्ष श्री विक्रम भंडारी ने मुख्य वक्ता का स्वागत किया एवं अपने उदगार व्यक्त किये। मुख्य वक्ता श्री विक्रम जी सेठीया (Life Coach) ने कहा जीवन में हम जो भी पाते है वो धर्म से ही प्राप्त होता है हमे अपने जीवन में धर्म को पकड़ कर रखना चाहिए। विक्रम जी ने युवाओं में जोश एवं ऊर्जा का संचार किया। मुनिश्री ने प्रेरणा पाथेय प्रदान किया। उपस्थित सभी परिषदों का सम्मान किया गया। आभार ज्ञापन सहमंत्री श्री राहुल दुगड़ ने किया एवं संचालन मंत्री श्री अमित बेगवानी ने किया। सम्मेलन को सफल बनाने में उपाध्यक्ष एवं संयोजक श्री विक्रम भंडारी सह संयोजक श्री भानु प्रताप चोरड़िया सहित सम्पूर्ण प्रबंधन समिति एवं कार्यसमिति सदस्यों का विशेष श्रम रहा। युवा सम्मेलन में साउथ हावड़ा, उत्तर कलकत्ता, लिलुआ, साउथ कलकत्ता, पूर्वांचल कोलकाता, हिन्दमोटर, कोलकाता मेन, उत्तर हावड़ा, सेंथिया, मुर्शिदाबाद इस्लामपुर और दिनहट्टा की शाखा परिषदों ने सहभागिता दर्ज की। सम्मेलन में लगभग 200 युवक सहभागी बनें। सम्मेलन प्रारंभ होने से पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं महामंत्री ने युवा साथियों की उपस्थिति में ध्वजारोहण किया।