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Previous: आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि अनुशासन, विधि, व्यवस्था व बहुश्रुतता के द्योतक थे श्रीमज्जयाचार्य …….सुरेंद्र मुनोत,ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 30.08.2024, शुक्रवार, वेसु, सूरत (गुजरात) , महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि सभी प्राणियों को जीवन प्रिय होता है। मनुष्य हो अथवा कोई अन्य छोटे से छोटा प्राणी ही क्यों न हो, सभी को जीवन प्रिय होता है, कोई मरना नहीं चाहता। प्राणी की यह सामान्य प्रवृत्ति होती है कि कोई मरना नहीं चाहता। मनुष्य इस बात पर ध्यान दे कि यदि वह नहीं मरना चाहता तो दूसरे भी मरना नहीं चाहते। सभी को अपने समान ही समझने का प्रयास करना चाहिए। ऐसी स्थिति में मनुष्य जितना अन्य प्राणियों की हिंसा से बच सके, बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी यह सोचे कि जैसे वह सुख चाहता है, कष्ट नहीं चाहता, मरना नहीं चाहता तो भला दूसरा दुःख, कष्ट और मरना क्यों चाहेगा। ऐसा विचार कर आदमी को अहिंसा की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। अपनी आत्मा के हित के लिए और दूसरों को किसी भी प्रकार का अपनी ओर से कष्ट न देने की भावना अहिंसा की भावना होती है। साधु के लिए अहिंसा पूर्णरूपेण पालनीय होती है और जिंदगी भर अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले होते हैं। आज भाद्रव कृष्णा द्वादशी है। यह तिथि ऐसे महापुरुष से जुड़ी हुई है, जिन्होंने इतनी छोटी उम्र में अहिंसा आदि महाव्रतों के पालक बन गए। वे महापुरुष थे तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य जीतमल स्वामी, जिन्हें जयाचार्य भी कहते हैं। उन्हें श्रीमज्जयाचार्य भी कहते हैं। श्रीमज् शब्द उन्हीं के नाम के आगे क्यों जुड़ा है, इस पर विचार किया जा सकता है। उनका संयम पर्याय भी काफी लम्बा रहा। उनकी ज्ञान चेतना भी बहुत विशिष्ट थी। छोटी उम्र में रचना करना, आगम पर कार्य करना कितनी बड़ी बात होती है। हमारे धर्मसंघ में आगम पर कार्य आचार्यश्री तुलसी के समय वि.सं. 2012 से शुरु हुआ जो काम अभी भी चल रहा है। काफी काम हो चुका है और अभी अवशिष्ट भी है। ऐसा लगता है कि आगमों पर कार्य श्रीमज्जयाचार्यजी ने भी किया। उन्होंने कई आगमों पर उन्होंने राजस्थानी भाषा में जोड़ की रचना कर दी। भगवती जोड़ को देखें तो आश्चर्य होता है कि इतने बड़े ग्रन्थ पर उन्होंने राजस्थानी भाषा में राग-रागणियों में अपनी विशेष समीक्षा आदि लिख दिए। उनके कितने ही ग्रंथ को देख लें तो तेरापंथ धर्मसंघ के दर्शन को जाना जा सकता है। अनेकानेक ग्रंथ उनकी विद्वता के यशोगान करने वाले हैं। वे आगमवेत्ता, तत्त्ववेत्ता आचार्य थे। एक आचार्य के सामने और भी व्यवस्था संबंधी कार्य होते हुए भी इतने साहित्य व ग्रंथ की रचना कर देना उनकी प्रज्ञा और मेधा का द्योतक प्रतीत हो रहा है। वे अनुशासन, विधि, व्यवस्था रखने वाले आचार्य थे। धर्मसंघ में साध्वीप्रमुखा का पद भी उन्हीं के द्वारा प्राप्त है। उनके बाद से यह परंपरा चली और उसके बाद आचार्यों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया है। उन्होंने साध्वी समुदाय की व्यवस्था में नया अध्याय जोड़ा था। उन्होंने महासंती सरदारांजी को मुखिया के रूप में आगे लाए। वे अनुशासन व्यवस्था के पक्ष में भी एक महत्त्वपूर्ण कदम था, जिसकी प्रासंगिकता आज भी प्रतीत हो रही है। वे बहुश्रुत, कुशल व्यवस्था प्रबंधकारक आचार्य थे। उनके जीवन में अध्यात्म और साधना का पक्ष भी है। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय में विशेष साधना भी की। जयाचार्य का महाप्रयाण आज के दिन जयपुर में हुआ था। आज के दिन पंचम आचार्य के रूप में मघवागणी प्राप्त हुए। श्रीमज्जयाचार्यजी ने अनुदान धर्मसंघ को दिए हैं, वे बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। हम उनके आभारी हैं। उनके जैसा महान व्यक्तित्व प्राप्त होना, धर्मसंघ का सौभाग्य था। ऐसे आचार्यप्रवर की हम अभिवंदना करते हैं। आचार्यश्री ने उनकी अभ्यर्थना में गीत का आंशिक संगान किया। मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनि दिनेशकुमारजी के नेतृत्व में चतुर्विध धर्मसंघ ने आचार्यश्री के मुखारविंद और केशलुंचन की निर्जरा में सहभागी बनाने हेतु निवेदन करने से पूर्व त्रिपदी द्वारा वंदना भी की। आचार्यश्री ने लोच के संदर्भ में साधु-साध्वियों को एक-एक घंटा आगम स्वाध्याय, श्रावक-श्राविकाओं को अतिरिक्त रूपी में सात सामायिक करने की प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखाजी का उद्बोधन हुआ। अनेकानेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान श्रीमुख से स्वीकार किया। तदुपरान्त मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने श्रीमज्जयाचार्य की अभ्यर्थना में गीत का संगान किया। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी श्रीमज्जयाचार्यजी की अभ्यर्थना में अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम में ठाणे के पूर्व सांसद श्री संजीव नाईक, राजस्थान पत्रिका के संपादक श्री शैलेन्द्र तिवारी, टेक्सटाइल युवा बिग्रेड के अध्यक्ष श्री ललित शर्मा ने आचार्यश्री के दर्शन किए। पूर्व सांसद श्री संजीव नाईक ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।Next: सुरत मे वर्षावास के दौरान आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि तन ही नहीं, मन भी रहे स्वस्थ …..सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 31.08.2024, शनिवार, वेसु, सूरत (गुजरात),भगवान महावीर समवसरण से जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शनिवार को आयारो आगमाधारित अपने पावन प्रवचन के माध्यम से जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि गलत खान-पान, रहन-सहन और प्राकृतिक प्रभाव से बीमारी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। कोई आदमी स्वस्थ है तो वह उसकी एक उपलब्धि है, किन्तु उसका घमण्ड नहीं करना चाहिए। कब किसको क्या हो जाए। बीमारी कभी हो भी जाए तो उसमें आदमी को अशांत नहीं होना चाहिए, चित्त को शांत बनाए रखने और उसको शांति से सहने का प्रयास करना चाहिए। बीमारी होने के बाद भी मन में शांति और समाधि रखने का प्रयास करना चाहिए साधु–साध्वियों के लिए कहा गया है कि बीमारी हो जाए तो उसमें चित्त की समाधि और शांति बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। कोई साधु-साध्वी रुग्ण हो जाए तो उसकी सेवा करना, उसकी परिचर्या करना, अस्पताल दिखाने आदि में भी मन में भी प्रसन्नता रहनी चाहिए। बीमार साधु-साध्वियों की प्रसन्न मन से की गई सेवा भी जीवन की एक उपलब्धि हो सकती है। सेवा सापेक्ष की सेवा करना चारित्रात्मा का समुदाय का कर्त्तव्य होता है। आयारो आगम में कहा गया है कि कभी रोग उत्पन्न हो जाते हैं। पूर्वार्जित कर्मों के योग से साधु को भी बीमारी हो सकती है। किसी को ज्यादा और किसी को कम भी हो सकता है। साधु को विशेष मनोबल रखने का प्रयास करना चाहिए। जहां तक संभव हो अपने जीवन की गाड़ी को मनोबल के द्वारा चलायमान रखने का प्रयास करना चाहिए। जितनी अपेक्षा हो बीमारी का इलाज कराने का भी प्रयास करना चाहिए, लेकिन डरते रहना, अशांत हो जाना, अधीर नहीं होना चाहिए। जहां तक संभव हो उसे सहन करने का प्रयास करना चाहिए। बाह्य के साथ-साथ आंतरिक शांति का भी प्रभाव पड़ता है। एलोपैथी दवाइयों का प्रयोग डॉक्टर की सलाह लेने का प्रयास होना चाहिए। इस प्रकार बीमारी के संदर्भ में कुछ बातें चिंतन और विवेक की भी हो सकती हैं। बीमारी में भी मनोबल रखने का प्रयास करना चाहिए। बीमारी के आने पर भी चित्त की समाधि, शांति बनी रहे। शरीर की स्वस्थता, चित्त की प्रसन्नता और मनोबल हो। इस प्रकार आदमी का तन और मन दोनों स्वस्थ और मजबूत रहें, यह काम्य है। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि कल से पर्युषण महापर्व का प्रारम्भ होने जा रहा है। वर्ष में एक बार चतुर्मास के दौरान इसका प्रसंग आता है जो अध्यात्म और साधना की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण समय होता है। कुल मिलाकर नौ दिनों का उपक्रम होता है। यह चतुर्विध धर्मसंघ के लिए अच्छा अवसर है। आचार्यश्री ने इन सात दिनों में साधु-साध्वियों व गृहस्थों के लिए भी आवश्यक पालनीय दिशा-निर्देश भी प्रदान किए। साथ ही आचार्यश्री ने इस दौरान चलने वाले आध्यात्मिक उपक्रमों के समय आदि का भी वर्णन किया। पर्युषण की आराधना अच्छे ढंग से करने की प्रेरणा प्रदान की। मंगल प्रेरणा और पर्युषण महापर्व के संदर्भ में पावन प्रेरणा प्रदान करने के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में दिवंगत साध्वी रतनश्रीजी (श्रीडूंगरगढ़) की स्मृतिसभा का भी आयोजन हुआ। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने उनके जीवन का संक्षिप्त परिचय वाचन करते हुए उनके प्रति मध्यस्थ भावना अभिव्यक्त करते हुए चतुर्विध धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान किया। तत्पश्चात साध्वी रतनश्रीजी (श्रीडूंगरगढ़) स्मृतिसभा ने मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, साध्वीप्रमुखाजी, मुनि ध्यानमूर्तिजी, साध्वी अखिलयशाजी व साध्वी मुक्तिश्रीजी ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। दिल्ली सभा के अध्यक्ष श्री सुखराज सेठिया ने भी इस संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी। जयपुर से समागत नवरत्नमल बाफना ने अपनी पुस्तक ‘कामधेनु मां रतनाश्री’ आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की।