सुरेंद्र मुनोत,ऐसोसिएट एडिटर
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात) ,जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी प्रेक्षा विश्व भारती में वर्ष 2025 का चतुर्मास सुसम्पन्न कर रहे हैं। कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती मानों वर्तमान में समय में विशेष धर्मस्थली बनी हुई है। जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु प्रतिदिन अपने जीवन को धर्म से भावित बनाने का प्रयास कर रहे हैं। वे अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में प्रतिदिन उनकी कल्याणीवाणी के श्रवण के साथ-साथ चारित्रात्माओं के निकट सेवा, दर्शन व उपासना का लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं। साथ अनेक प्रकार की तपस्याओं के माध्यम से भी अपने इहलोक व परलोक को संवारने का प्रयास कर रहे हैं। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आयोजनों का क्रम भी अविरल रूप से गतिमान है तो विशिष्ट महानुभावों के पूज्य सन्निधि में पहुंचने का क्रम भी बना हुआ है। गुरुवार को सायंकाल भारत सरकार के केन्द्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री गजेन्द्रसिंह शेखावत युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में उपस्थित हुए। उन्होंने आचार्यश्री को वंदन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त कर आचार्यश्री के पट्ट के निकट ही बैठे। उनका आचार्यश्री के साथ विभिन्न विषयों पर संक्षिप्त वार्तालाप का क्रम भी रहा। आचार्यश्री से आध्यात्मिक ऊर्जा व मार्गदर्शन प्राप्त कर वे पुनः अपने गंतव्य को प्रस्थान कर गए।शुक्रवार को प्रातःकालीन मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्रों से एक सुन्दर शिक्षा, तत्त्वज्ञान, आत्मवाद, कर्मवाद की जानकारियों के साथ साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए मार्गदर्शन देने वाले भी होते हैं। शास्त्र त्राण देने वाले बन सकते हैं और शास्त्र शासन करने वाले भी होते हैं। शास्त्रों में वर्णित नियमों आदि के अनुसार रहने का प्रयास हो। इस प्रकार शास्त्रों से अनुशासन भी प्राप्त होता है। साधु को गोचरी के संदर्भों में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, कैसे बोलना चाहिए आदि-आदि विषयों की जानकारी देने वाले और अनेक पापों से बचाने वाले होते हैं। इसलिए कहा गया है कि जिसमें शासन करने और त्राण देने की स्थिति है, वे शास्त्र कहलाते हैं। जिसके द्वारा शासन-अनुशासन किया जाता है, उसे शास्त्र कहते हैं। इस प्रकार आगमों के माध्यम से एक सुन्दर रूपरेखा और जीवनोपयोगी निर्देश प्राप्त होते हैं।शास्त्र में बताया गया है कि साधना की दृष्टि से भोजन का संयम बहुत महत्त्वपूर्ण है। जहां संयम की साधना करनी है, भोजन का संयम भी आवश्यक होती है। निर्जरा के बारह भेद वास्तव में तपस्या के भेद हैं। उनमें उनोदरी की बात बताई गई है। उनोदरी साधना की दृष्टि से, तप की दृष्टि से और संयम की पुष्टि की दृष्टि से बहुत उपयोगी होती है। आदमी को भोजन करने में संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। स्वादिष्ट चीजें हों तो भी खाने में संयम होना चाहिए। ऐसा होता है तो उनोदरी संयम की साधना में सहयोगी हो सकती है। हर आदमी आदमी उपवास नहीं कर सकता तो उनोदरी तो मानों सभी के संयम में सहायक बन सकती है। भूख भी लगी हो और भोजन सामने आ जाए तो भूख से थोड़ा कम खाना ग्रहण करना डनोदरी की साधना होती है। यह भी बताया गया है कि जो व्यंजन ज्यादा प्रिय हो तो उसे भी कम खाने अथवा नहीं खाने का प्रयास करना चाहिए। विगयों का वर्जन भी संयम का अच्छा रूप है। जो आदमी भोजन में संयम रखता है, वह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुत अच्छी बात हो सकती है। सूर्यास्त के बाद न खाना और न पानी पीना, बहुत अच्छी संयम की बात हो सकती है। यह कार्य थोड़ा कठिन तो हो सकता है, किन्तु संयम और साधना का अच्छा रूप है।परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने पौष कृष्णा पंचमी को दीक्षा ली, अब उनकी दीक्षा के सौ वर्ष होने वाले हैं। 9 दिसम्बर 2025 को सौ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। बचपन में दीक्षा ले ली करीब तैंयासी-बयासी वर्ष का संयमकाल जो अखण्ड रूप में रहा, जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है। जो संयम लिया, उसे अंतिम श्वास तक निभाया। वैसा जीवन न हो तो आए तो कुछ अंशों में मानव को संयमी बनने का प्रयास करना चाहिए। खानपान के साथ-साथ उपकरणों की अल्पता भी अच्छी बात होती है। अल्पोपधि रहना बहुत अच्छी बात होती है। यह सभी संयम की बात होती है। इस प्रकार आदमी संयम की साधना करे तो वह साधना व शरीर दोनों दृष्टि से अच्छी बात हो सकती है।आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनि मदनकुमारजी ने तपस्या के संदर्भ में जानकारी दी। प्रोफेसर श्री धर्मचंद जैन ने स्वरचित पुस्तक ‘भारतीय जनता पार्टी मोदी से मोदी तक’ आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित करते हुए अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।