
सुरेंद्र मुनोत, सहायक संपादक संपूर्ण भारत
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गांधीनगर (गुजरात) ,गुजरात की धरा पर लगातार दो चतुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गुरुवार को प्रातःकाल करीब साढे सात बजे के आसपास कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती से मंगल गतिमान हुए तो श्रीचरणों में अपनी श्रद्धाप्रणति अर्पित करने हेतु अहमदाबादवासी श्रद्धालुओं का ज्वार उमड़ पड़ा। हजारों सजल नेत्रों से छलकते अश्रु बूंद मानों साबरमती नदी के तट पर बसे शहर अहमदाबाद को भावनाओं के उमड़ते ज्वार में समाहित करने को तत्पर दिखाई दे रहे थे। जन-जन के मानस में बस एक ही अरदास उठ रही थी, हे आराध्य! हमें अनाथ ना बनाओ, थोड़ा और ठहर जाओ, किन्तु निस्पृह आचार्यश्री महाश्रमणजी जनकल्याण के लिए पुनः गतिमान हुए।सिल्क सिटि व डायमण्ड सिटि के रूप में विख्यात सूरत में वर्ष 2024 का चतुर्मास के उपरान्त लगभग सम्पूर्ण गुजरात की धरा को अध्यात्म की ज्ञानगंगा से अभिसिंचन प्रदान करने के उपरान्त 6 जुलाई को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता ने गुजरात की धरा पर लगातार दूसरा चतुर्मास के लिए अहमदाबाद के निकट कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में मंगल प्रवेश किया। चार महीनों तक साबरमती नदी के तट पर श्रीमुख से निरंतर प्रवाहित होने वाली आध्यात्मिक गंगा में डुबकी लगाने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु ही नहीं, राजनीति, लेखन, कला, फिल्म, चिकित्सा, शिक्षा, समाजसेवा, मीडिया व प्रशासन से जुड़े विशिष्ट लोग भी उपस्थित हुए। देश के गृहमंत्री श्री अमित शाह, से लेकर गुजरात के राज्यपाल आचार्यश्री देवव्रत, मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र पटेल, गृहमंत्री श्री हर्ष संघवी के शिक्षामंत्री आदि-आदि अनेक केन्द्रीय व राज्यमंत्री उपस्थित हुए। वहीं फिल्मी जगत के अभिनेता संजय दत्त, विवेक ओबेराय आदि ने शांतिदूत के दर्शन का लाभ प्राप्त किया। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भावगत, मुख्य सामाजिक कार्यकर्ता व वरिष्ठ पत्रकार श्री पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ, इंडिया टीवी के डायरेक्टर श्री रजत शर्मा आदि अनेक गणमान्यों ने अध्यात्म की गंगा में डुबकी लगाकर अपने मानस को पावन बनाया।गुरुवार को प्रातःकाल करीब साढे सात बजे प्रेक्षा विश्व भारती परिसर पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ था। श्रद्धालुओं के उमड़ती संख्या से भी भारी नजर आ रही थी उनके हृदय में उमड़ती श्रद्धा, आस्था व विश्वास रूपी भावात्मक ज्वार। यह ज्वार अपने आराध्य के प्रस्थान को मानों रोकने का पूर्ण प्रयास कर रही थी। हजारों-हजारों नेत्र सजल थे, कंठ अवरुद्ध थे तो दोनों हाथ श्रद्धा से जुड़े हुए थे। मुख मौन थे, मानों आज सारी भावनाओं को व्यक्त करने की जिम्मेदारी नेत्रों ने उठा रखी थी। तभी तो मुख बंद होने के बाद भी नेत्रों से अश्रु बूंदे टपककर आंतरिक भावों को अभिव्यक्त कर रही थीं। जैसी ही घड़ी ने साढे बजे का संकेत किया, भावनाओं से उपरत व निस्पृह युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ प्रेक्षा विश्व भारती से प्रस्थित हो गए। इससे पूर्व आचार्यश्री अहमदाबाद व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों व श्रद्धालुओं को मंगलपाठ सुनाने के साथ-साथ पावन पाथेय भी प्रदान किया।आचार्यश्री के साथ हजारों पद ऐसे चल पड़े मानों वे अपने आराध्य के चरणों का ही अनुगमन करते रहना चाहते थे। जन-जन को अपने मंगल आशीष से आच्छादित कर व अहमदाबाद को आध्यात्मिकता से भावित बना अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर गतिमान हुए। प्रथम दिन ही युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर गांधीनगर के बोरिज में स्थित विश्व मैत्री धाम में पधारे।विश्व मैत्री धाम परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य जन्म मिलना एक विशेष बात मानी जा सकती है। आदमी चिंतनशील भी होता है। सब मनुष्यों में चिंतनशीलता एक ऐसी न भी हो, किन्तु आदमी के पास दिमाग होती है, अपनी बुद्धि होती है, अच्छी पढ़ाई कर सकता है तो वह सर्वोच्च कोटि की आध्यात्मिक साधना भी कर सकता है। साधना के लिए मनुष्य साधु बन जाते हैं। इसी प्रकार जैन शासन की साधुता है। जैन साधु की साधना पांच महाव्रतों वाली होती है। इनमें से कितने साधु केवलज्ञानी बन जाते हैं और कुछ साधु तो मोक्ष को भी प्राप्त कर लेते हैं।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की साधु परंपरा का एक नियम है कि चतुर्मास के दौरान एक स्थान पर प्रवास करना और चतुर्मास की सम्पन्नता पर मृगशिर कृष्णा एकम् को प्रस्थान कर देना। वर्तमान व्यवस्था में यह दिन प्रस्थान का ही होता है। कोई विशेष स्थिति न हो तो इस दिन विहार करना ही होता है। संतों का विचरने से भी जनकल्याण का कार्य हो सकता है। संतों के उपदेश से, प्रेरणा से और दर्शन से कितनों की चेतना में अध्यात्म का सूर्योदय हो सकता है। संतों की वाणी और उपदेशों पर लोगों की श्रद्धा भी होती है। संतता का जीवन बहुत बड़ी बात होती है। सबको साधुता न भी प्राप्त हो सके तो गृहस्थ जीवन में रहने वाले लोगों में सद्गुणों का विकास हो तो जीवन अच्छा हो सकता है। मानव को अपने जीवन को विभूषित करने के लिए सद्गुणों के आभूषण को धारण करने का प्रयास करना चाहिए। हाथ से दान देना हाथ का आभूषण होता है। गुरुचरणों में वंदन सिर का आभूषण है। झूठ नहीं बोलना वाणी का आभूषण होता है। प्रवचन सुनना, शास्त्रों की वाणी सुनना, मंत्र, कथा आदि सुनना कान का आभूषण हो जाता है। भुजाओं का आभूषण किसी की सेवा करने में होता है। इन सद्गुण रूपी आभूषणों से आदमी के जीवन का कल्याण हो सकता है।मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री के समक्ष आचार्यश्री तुलसी दीक्षा शताब्दी वर्ष के दौरान जाणुन्दा में होने वाले प्रवास से संदर्भित बैनर का लोकार्पण जाणुन्दा के लोगों ने किया। योगक्षेम प्रवास व्यवस्था समिति-लाडनूं के अध्यक्ष श्री प्रमोद बैद ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल- लाडनूं ने गीत का संगान किया।

