सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times
वेसु, सूरत (गुजरात) ,जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी भय का अनुभव भी करता है। भय एक संज्ञा है। चार संज्ञाएं बताई गई और कहीं दस संज्ञाएं भी बताई गई हैं। उनमें दूसरी संज्ञा है- भय संज्ञा। प्राणी डरता है। प्राणी को दुःख से डरता है। जहां कहीं भी दुःख की संभावना होती है, वहां वह भयभीत हो जाता है।
भयभीत आदमी हिंसा में भी जा सकता है और मृषावाद में भी जा सकता है। भय हिंसा का कारण भी बन सकता है और झूठ बोलने का कारण भी बन सकता है। यहां आयारो में कहा गया कि जो आदमी आरम्भजीवी है, अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए आरम्भ करता है, हिंसा में लिप्त हो जाता है, परिग्रह भी इकट्ठा कर लेता है, तो वह वहां भय में जा सकता है।
आदमी के पास धन नहीं है तो भी दुःखी बन सकता है और खूब धन है तो भी दुःखी बन सकता है। खूब धन है तो चोरी, डाका, लूट का डर सताता है और कभी-कभी जान पर भी आफत आ सकता है। आजकल सरकारी रेड पड़ जाए तो भी दुःख की स्थितियां बन सकती हैं। गृहस्थ जीवन में परिग्रह भी चाहिए, परन्तु परिग्रह का जितना सीमाकरण हो सके, करने का प्रयास करना चाहिए। साधु के जीवन में तो अपरिग्रह महाव्रत होता है। इसलिए साधु के मालिकाना में न तो कोई जमीन, न एक रुपया होता है। साधु तो अकिंचन होता है।
गृहस्थ जीवन से साधुत्व की ओर बढ़ने की भावना आ जाए तो बहुत बड़ी बात हो सकती है। गृहस्थावस्था में रहते हुए आदमी अपने जीवन में परिग्रह का अल्पीकरण करने का प्रयास करे। जीवन में जितना संभव हो सके, अहिंसा व संयम रखने का प्रयास करना चाहिए।
बालक ग्रंथ प्रकाश मेहता व बालक आराध्य चपलोत ने अपनी बाल सुलभ प्रस्तुति दी। मंगल प्रवचन कार्यक्रम के पश्चात चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा सहयोग प्रदाता परिवारों को सम्मानित करने का क्रम भी जारी रहा।