सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times
वेसु, सूरत (गुजरात) ,भारत के उन्न प्रदेशों में प्रथम स्थान रखने वाला गुजरात राज्य और गुजरात राज्य ही बल्कि दुनिया में अपने हीरों की चमक और वस्त्र उद्योग की रंगत से विशेष स्थान रखने वाले सूरत शहर में वर्ष 2024 का चतुर्मास कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ऐसी आध्यात्मिक गंगा बहाई है कि अब यह मानों एक धार्मिक नगरी के रूप में भी ख्यापित हो गई है। देश-विदेश से गुरु सन्निधि में पहुंचने वाले हजारों-हजारों श्रद्धालुओं की विशेष उपस्थिति व सूरतवासियों द्वारा की जा रही सुन्दर आव-भगत की चर्चा मानों सर्वत्र है।
सूरत नगरी का यह चतुर्मास अब सम्पन्नता की ओर है, इसके बावजूद भी श्रद्धालुओं के पहुंचने की संख्या तथा तेरापंथ धर्मसंघ के संगठनों, संस्थाओं आदि के कार्यक्रम और सम्मेलनों का दौरान वर्तमान समय में भी जारी है। एक ओर प्रेक्षा इण्टरनेशनल द्वारा का अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षाध्यान शिविर गतिमान है तो दूसरी ओर रविवार को पारमार्थिक शिक्षण संस्थान का द्वितीय अधिवेशन का क्रम भी रहा।
रविवार को महावीर समवसरण में उपस्थित विशाल जनता के जनता के पारमार्थिक शिक्षण संस्थान में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली मुमुक्षु व बोधार्थी बाइयों की भी विशेष उपस्थिति थी। कार्यक्रम के शुभारम्भ में पारमार्थिक शिक्षण संस्थान के अध्यक्ष श्री बजरंग जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। समणी ऋजुप्रज्ञाजी ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मुमुक्षु अंजलि ने संस्था की रिपोर्ट प्रस्तुत की।
तेरापंथाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से उपस्थित जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जीवों के कर्म बंध और कर्म विपाक को जानकर उनके सुख और दुःख को देखना चाहिए। प्राणी दुःख का अनुभव करता है तो सुख का भी अनुभव करता है। यहां कर्म को दुःख बताया गया है। अपने कर्मों के उपादान कारण से दुःख उत्पन्न होता है। भौतिक संदर्भों में प्राप्त होने वाला सुख भी कर्म से जुड़ा हुआ है। आध्यात्मिक सुख कर्म के विलय से प्राप्त होने वाला है। कर्म के निर्जरा से भीतरी सुख की प्राप्ति हो सकती है।
कर्मों के विलय से वास्तविक, आध्यात्मिक, आंतरिक और परम सुख की प्राप्ति हो सकती है। उस सुख की प्राप्ति के लिए कर्मों की निर्जरा और संवर की आवश्यकता है। संवर और निर्जरा को परमार्थ तत्त्व भी कह सकते हैं। मोक्ष के साधनभूत के रूप में संवर और निर्जरा प्राप्त होता है।
आज पारमार्थिक शिक्षण संस्थान का दूसरा अधिवेशन हो रहा है। 75 वर्षों के कालमान को इस संस्था ने सम्पन्न कर लिया है। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के समय अनेक संस्थाओं ने जन्म लिया था, उनमें एक संस्था यह पारमार्थिक शिक्षण संस्था है। समाज में अनेक संस्थाएं हैं, लेकिन यह संस्था परमार्थ से जुड़ी हुई है। और भी संस्थाओं परमार्थ का कार्य हो सकता है, किन्तु यह संस्था पूर्णतया परमार्थ को समर्पित है। यहां रहने वालों का उद्देश्य साध्वी, मुनि और समणी की दीक्षा के रूप में अपना कल्याण होता है। इसे मुमुक्षु संस्था भी कहा जा सकता है, यह मोक्ष के इच्छुकों की संस्था है। यह संस्था अभी भी गतिमान है। मुझे भी इस संस्था से जुड़ने का कुछ अवसर मिला था। वर्तमान साध्वीप्रमुखाजी और साध्वीवर्या भी इसी संस्था से आई है। दीक्षा से पहले यहां शिक्षा, परीक्षा, समीक्षा होती है और बाद में दीक्षा की बात होती है। इसमें संख्या वृद्धि और गुणवत्ता वृद्धि का प्रयास होना चाहिए। इसके लिए मैंने साध्वीवर्या और मुख्यमुनि को भी कह रखा है। यह संस्था खूब अच्छा विकास होता रहे।
भगवान महावीर निर्वाण दिवस के संदर्भ में तीन दिनों के तेले की तपस्या में प्रेरणा प्रदान की। मुमुक्षु बहनों ने अपनी संवादात्मक प्रस्तुति दी। मुमुक्षु बहनों ने गीत का भी संगान किया। मुमुक्षु बिनु और मुमुक्षु सेफाली ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी।
साध्वीवर्याजी, साध्वीप्रमुखाजी व मुख्यमुनिश्री ने सम्मुख उपस्थित जनता व मुमुक्षु व बोधार्थी बाइयों को अपना उद्बोधन प्रदान किया।