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October 6, 2024

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शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे भारत सरकार के कानून एवं न्याय राज्यमंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , डायमण्ड सिटि व सिल्क सिटि सूरत को आध्यात्मिक नगरी के रूप में स्थापित कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु की भारी भीड़ उमड़ रही है तो दूसरी ओर आए दिन कोई न कोई विशिष्ट व्यक्तित्व भी आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित होते हैं। गुजरात के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, शिक्षामंत्री, भारत के जलशक्ति मंत्री आदि-आदि अनेक विशिष्ट लोगों के साथ अनेक संप्रदायों के सर्वोच्च गुुरु भी उपस्थित हो रहे हैं। इनकी उपस्थिति इस चतुर्मास प्रवास को और अधिक वैशिष्ट्य प्रदान कर रही है। नवरात्र के आध्यात्मिक अनुष्ठान व अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के दौरान शनिवार को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में भारत सरकार के कानून एवं न्याय तथा संसदीय कार्य राज्यमंत्री तथा जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री अर्जुनराम मेघवाल भी उपस्थित हुए। उन्होंने आचार्यश्री के दर्शन किया। साथ आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज एनसीसी के सैंकड़ों कैडेट भी अपने मेजर के साथ उपस्थित हुए और आचार्यश्री से नशामुक्ति का संकल्प स्वीकार किया। नित्य की भांति शनिवार को महावीर समवसरण में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का मंगल पदार्पण हुआ। आचार्यश्री ने चतुर्विध धर्मसंघ को आध्यात्मिक अनुष्ठान के अंतर्गत मंत्रों का जप कराया। लगभग आधे घंटे के इस क्रम में मानों पूरा महावीर समवसरण एक तपोस्थली की भांति प्रतीत हो रही थी। उपस्थित जनता को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में भोजन का भी महत्त्व होता है। शरीर को टिकाए रखने के लिए हवा, पानी और भोजन भी चाहिए। यह जीवन की प्रथम कोटि की आवश्यकताएं हैं। इन तीनों में पहला स्थान हवा का है, दूसरा स्थान जल का और तीसरा स्थान भोजन का है। भोजन किए बिना तो कितने तपस्वी महीने-दो महीने से भी अधिक समय तक रह जाते हैं तो उनका जीवन चलता रहता है। आहार के बिना तो कई महीनों तक मानव जिंदा रह सकता है। जल मानों मानव जीवन के लिए ज्यादा जरूरी है। पानी के बिना ज्यादा लम्बे समय तक जीवित रहना कठिन है। पानी से ज्यादा महत्त्वपूर्ण हवा होती है। हवा न हो तो आदमी श्वास नहीं ले तो कुछ ही मिनट में मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। प्रथम कोटि की आवश्यकताओं में हवा उत्कृष्ट, पानी मध्यम और भोजन जघन्य रूप की आवश्यकता होती है। दूसरे कोटि की आवश्यकताओं में देखें तो तन ढकने के कपड़ा और रहने के लिए मकान की आवश्यकता होती है। कितने दिगम्बर मुनि और अन्य परंपराओं के कितने मुनि बिना वस्त्रों के जीवन जीते हैं। मकान नहीं होता है तो भी फुटपाथ और वृक्षों के नीचे रहकर भी जीवन चलाया जा सकता है। तीसरे कोटि की आवश्यकता में शिक्षा और चिकित्सा होती है। इस प्रकार जीवन की इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव कई बार चिंतित हो सकता है और दुःखी भी हो सकते हैं। आयारो में बताया गया कि जो वीर होते हैं, वो रूखा-सुखा खाकर भी जीवित रह जाते हैं। आदमी को भोजन चाहिए, सात्विक भोजन की आवश्कता है, किन्तु कई बार आदमी ऐसी चीजों को खा लेता है, जो जीवन को नुक्सान पहुंचाने वाली होती हैं। जैसे मानव जीवन के लिए जल कितना आवश्यक है, लेकिन आदमी शराब पीने लग जाता है। शराब, गुटखा, सिगरेट, बीड़ी आदि जो शरीर के लिए अहितकर होती है, उसका आसेवन करने लगता है। शाकाहार से काम चलता है तो फिर भोजन मासांहार क्यों शामिल किया जाए। जैन परंपरा में नॉनवेज को निषेध किया गया है। जीवन में नशामुक्ति की बात भी है। अणुव्रत आन्दोलन का एक सूत्र है नशामुक्ति। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन का शुभारम्भ किया था। आज अर्जुनरामजी मेघवाल जी आए हैं। भारत सरकार के मंत्री हैं, अणुव्रत से भी जुड़े हुए हैं और हमारे जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं। ये इतने बार आ चुके हैं, मानों हमारे बहुत अच्छे परिचित हैं। मानों परिवार के सदस्य की भांति हैं। गुरुदेव तुलसी के समय ये विद्यार्थी के रूप में थे, तब से इनका लगाव रहा है। प्राकृत भाषा को क्लासिकल भाषा के रूप में स्वीकार किया गया है। हमारे शास्त्रों की भाषा प्राकृत, अर्धमागधि में है। संस्कृत, प्राकृत आदि में निर्मित ग्रंथों में इतने गूढ़ रहस्य हैं कि विज्ञान के लिए भी काम आ जाते हैं। ग्रंथों और पंथों का लाभ जनता को मिले। राजनीति भी सेवा बहुत बड़ा माध्यम है। अणुव्रत की अनेक संस्थाएं हैं, इनमें अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी अणुव्रत के कार्यों के लिए जिम्मेवार संस्था है। अभी अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह भी चल रहा है। आज पांचवा दिन है। अणुव्रत का जितना प्रचार-प्रसार हो सके, इसका प्रयास हो। आचार्यश्री ने समुपस्थित एन.सी.सी. के कैडेटों को प्रेरणा देते हुए ड्रग्स और ड्रिंकिंग न करने प्रतिज्ञा करने का आह्वान किया तो एन.सी.सी. के कैडेटों ने सहर्ष संकल्प स्वीकार किया। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का पांचवा दिन नशामुक्ति दिवस के रूप में समायोजित हुआ। श्री राजेश सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। एन.सी.सी. की मेजर अरुधंति शाह ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा कि आज के अवसर पर मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी को प्रणाम करती हूं। नशामुक्ति आज के समय की सबसे बड़ी समस्या है। जैन धर्म को वैज्ञानिक धर्म माना गया है। यहां पर मानव जीवन के विभिन्न समस्याओं का समाधान हो सकता है। आज दुनिया डेटा में फंस गयी है तो उसे सप्ताह में एक दिन डेटा का भी उपवास करे, ऐसा प्रयास होना चाहिए। एलिवेट के कार्य से जुड़े मुनि अभिजितकुमारजी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। अणुव्रत समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री विमल लोढ़ा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। उपस्थित जनता को आज के अवसर पर साध्वीप्रमुखाजी ने भी उद्बोधित किया। भारत सरकार के कानून एवं न्याय तथा संसदीय कार्य राज्यमंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे और आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी को प्रणाम करता हूं। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत नशामुक्ति दिवस है, उस संदर्भ में कहना चाहूंगा कि नशामुक्ति के लिए अणुव्रत एक्सप्रेस में कार्य किया जा सकता है। एन.सी.सी. जीवन में अनुशासन का बहुत महत्त्व होता है। आचार्यश्री तुलसी ने अपने से अपना अनुशासन करने की प्रेरणा दी। नॉनवेज छोड़कर सात्विक हो जाएं तो विचारों में कितनी उन्नति हो जाएगी। आचार्यश्री जो आशीर्वाद बरसाया, मेरे लिए बहुत ही प्रेरणास्पद रही है। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-सूरत की ओर से चतुर्मास के लिए स्थान प्रदान करने वाले वालों को सम्मानित करने का उपक्रम रहा, जिसमें भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिवार, श्री विट्ठलभाई परेवियार परिवार, श्री राजेश-तनसुख आहिर परिवार, श्री किरणभाई पटेल परिवार, श्री मोहनभाई छिवंका भाई पटेल परिवार, श्री जयप्रकाश खानचंदजी आसवानी परिवार, श्री शंकरलाल मारवाड़ी परिवार, श्री जीवन केवलभाई पटेल परिवार, श्री रविन्द्रभाई पटेल परिवार, श्री मनीष, महेन्द्र, मुकुल देसाई परिवार, श्री मोहनभाई मोंजानी परिवार, श्री संजयभाई पटेल परिवार, श्री विनीत रणजीतसिंह सुराणा, श्री हिरणभाई देसाई परिवार, श्री अमितभाई देसाई परिवार, श्री दिवेश, मनहर परमार परिवार, चीफ फायर आफिसर श्री बसंतभाई पारिख, जोन आफिसर अठवा जोन श्रीमती मिताबेन गांधी परिवार, भाजपा-सूरत के महामंत्री श्री किशोर बिंदल को सम्मानित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। इस कार्यक्रम का संचालन चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री नानालाल राठौड़ ने किया।

शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे भारत सरकार के कानून एवं न्याय राज्यमंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , डायमण्ड सिटि व सिल्क सिटि सूरत को आध्यात्मिक नगरी के रूप में स्थापित कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु की भारी भीड़ उमड़ रही है तो दूसरी ओर आए दिन कोई न कोई विशिष्ट व्यक्तित्व भी आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित होते हैं। गुजरात के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, शिक्षामंत्री, भारत के जलशक्ति मंत्री आदि-आदि अनेक विशिष्ट लोगों के साथ अनेक संप्रदायों के सर्वोच्च गुुरु भी उपस्थित हो रहे हैं। इनकी उपस्थिति इस चतुर्मास प्रवास को और अधिक वैशिष्ट्य प्रदान कर रही है। नवरात्र के आध्यात्मिक अनुष्ठान व अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के दौरान शनिवार को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में भारत सरकार के कानून एवं न्याय तथा संसदीय कार्य राज्यमंत्री तथा जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री अर्जुनराम मेघवाल भी उपस्थित हुए। उन्होंने आचार्यश्री के दर्शन किया। साथ आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज एनसीसी के सैंकड़ों कैडेट भी अपने मेजर के साथ उपस्थित हुए और आचार्यश्री से नशामुक्ति का संकल्प स्वीकार किया। नित्य की भांति शनिवार को महावीर समवसरण में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का मंगल पदार्पण हुआ। आचार्यश्री ने चतुर्विध धर्मसंघ को आध्यात्मिक अनुष्ठान के अंतर्गत मंत्रों का जप कराया। लगभग आधे घंटे के इस क्रम में मानों पूरा महावीर समवसरण एक तपोस्थली की भांति प्रतीत हो रही थी। उपस्थित जनता को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में भोजन का भी महत्त्व होता है। शरीर को टिकाए रखने के लिए हवा, पानी और भोजन भी चाहिए। यह जीवन की प्रथम कोटि की आवश्यकताएं हैं। इन तीनों में पहला स्थान हवा का है, दूसरा स्थान जल का और तीसरा स्थान भोजन का है। भोजन किए बिना तो कितने तपस्वी महीने-दो महीने से भी अधिक समय तक रह जाते हैं तो उनका जीवन चलता रहता है। आहार के बिना तो कई महीनों तक मानव जिंदा रह सकता है। जल मानों मानव जीवन के लिए ज्यादा जरूरी है। पानी के बिना ज्यादा लम्बे समय तक जीवित रहना कठिन है। पानी से ज्यादा महत्त्वपूर्ण हवा होती है। हवा न हो तो आदमी श्वास नहीं ले तो कुछ ही मिनट में मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। प्रथम कोटि की आवश्यकताओं में हवा उत्कृष्ट, पानी मध्यम और भोजन जघन्य रूप की आवश्यकता होती है। दूसरे कोटि की आवश्यकताओं में देखें तो तन ढकने के कपड़ा और रहने के लिए मकान की आवश्यकता होती है। कितने दिगम्बर मुनि और अन्य परंपराओं के कितने मुनि बिना वस्त्रों के जीवन जीते हैं। मकान नहीं होता है तो भी फुटपाथ और वृक्षों के नीचे रहकर भी जीवन चलाया जा सकता है। तीसरे कोटि की आवश्यकता में शिक्षा और चिकित्सा होती है। इस प्रकार जीवन की इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव कई बार चिंतित हो सकता है और दुःखी भी हो सकते हैं। आयारो में बताया गया कि जो वीर होते हैं, वो रूखा-सुखा खाकर भी जीवित रह जाते हैं। आदमी को भोजन चाहिए, सात्विक भोजन की आवश्कता है, किन्तु कई बार आदमी ऐसी चीजों को खा लेता है, जो जीवन को नुक्सान पहुंचाने वाली होती हैं। जैसे मानव जीवन के लिए जल कितना आवश्यक है, लेकिन आदमी शराब पीने लग जाता है। शराब, गुटखा, सिगरेट, बीड़ी आदि जो शरीर के लिए अहितकर होती है, उसका आसेवन करने लगता है। शाकाहार से काम चलता है तो फिर भोजन मासांहार क्यों शामिल किया जाए। जैन परंपरा में नॉनवेज को निषेध किया गया है। जीवन में नशामुक्ति की बात भी है। अणुव्रत आन्दोलन का एक सूत्र है नशामुक्ति। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन का शुभारम्भ किया था। आज अर्जुनरामजी मेघवाल जी आए हैं। भारत सरकार के मंत्री हैं, अणुव्रत से भी जुड़े हुए हैं और हमारे जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं। ये इतने बार आ चुके हैं, मानों हमारे बहुत अच्छे परिचित हैं। मानों परिवार के सदस्य की भांति हैं। गुरुदेव तुलसी के समय ये विद्यार्थी के रूप में थे, तब से इनका लगाव रहा है। प्राकृत भाषा को क्लासिकल भाषा के रूप में स्वीकार किया गया है। हमारे शास्त्रों की भाषा प्राकृत, अर्धमागधि में है। संस्कृत, प्राकृत आदि में निर्मित ग्रंथों में इतने गूढ़ रहस्य हैं कि विज्ञान के लिए भी काम आ जाते हैं। ग्रंथों और पंथों का लाभ जनता को मिले। राजनीति भी सेवा बहुत बड़ा माध्यम है। अणुव्रत की अनेक संस्थाएं हैं, इनमें अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी अणुव्रत के कार्यों के लिए जिम्मेवार संस्था है। अभी अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह भी चल रहा है। आज पांचवा दिन है। अणुव्रत का जितना प्रचार-प्रसार हो सके, इसका प्रयास हो। आचार्यश्री ने समुपस्थित एन.सी.सी. के कैडेटों को प्रेरणा देते हुए ड्रग्स और ड्रिंकिंग न करने प्रतिज्ञा करने का आह्वान किया तो एन.सी.सी. के कैडेटों ने सहर्ष संकल्प स्वीकार किया। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का पांचवा दिन नशामुक्ति दिवस के रूप में समायोजित हुआ। श्री राजेश सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। एन.सी.सी. की मेजर अरुधंति शाह ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा कि आज के अवसर पर मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी को प्रणाम करती हूं। नशामुक्ति आज के समय की सबसे बड़ी समस्या है। जैन धर्म को वैज्ञानिक धर्म माना गया है। यहां पर मानव जीवन के विभिन्न समस्याओं का समाधान हो सकता है। आज दुनिया डेटा में फंस गयी है तो उसे सप्ताह में एक दिन डेटा का भी उपवास करे, ऐसा प्रयास होना चाहिए। एलिवेट के कार्य से जुड़े मुनि अभिजितकुमारजी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। अणुव्रत समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री विमल लोढ़ा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। उपस्थित जनता को आज के अवसर पर साध्वीप्रमुखाजी ने भी उद्बोधित किया। भारत सरकार के कानून एवं न्याय तथा संसदीय कार्य राज्यमंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे और आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी को प्रणाम करता हूं। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत नशामुक्ति दिवस है, उस संदर्भ में कहना चाहूंगा कि नशामुक्ति के लिए अणुव्रत एक्सप्रेस में कार्य किया जा सकता है। एन.सी.सी. जीवन में अनुशासन का बहुत महत्त्व होता है। आचार्यश्री तुलसी ने अपने से अपना अनुशासन करने की प्रेरणा दी। नॉनवेज छोड़कर सात्विक हो जाएं तो विचारों में कितनी उन्नति हो जाएगी। आचार्यश्री जो आशीर्वाद बरसाया, मेरे लिए बहुत ही प्रेरणास्पद रही है। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-सूरत की ओर से चतुर्मास के लिए स्थान प्रदान करने वाले वालों को सम्मानित करने का उपक्रम रहा, जिसमें भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिवार, श्री विट्ठलभाई परेवियार परिवार, श्री राजेश-तनसुख आहिर परिवार, श्री किरणभाई पटेल परिवार, श्री मोहनभाई छिवंका भाई पटेल परिवार, श्री जयप्रकाश खानचंदजी आसवानी परिवार, श्री शंकरलाल मारवाड़ी परिवार, श्री जीवन केवलभाई पटेल परिवार, श्री रविन्द्रभाई पटेल परिवार, श्री मनीष, महेन्द्र, मुकुल देसाई परिवार, श्री मोहनभाई मोंजानी परिवार, श्री संजयभाई पटेल परिवार, श्री विनीत रणजीतसिंह सुराणा, श्री हिरणभाई देसाई परिवार, श्री अमितभाई देसाई परिवार, श्री दिवेश, मनहर परमार परिवार, चीफ फायर आफिसर श्री बसंतभाई पारिख, जोन आफिसर अठवा जोन श्रीमती मिताबेन गांधी परिवार, भाजपा-सूरत के महामंत्री श्री किशोर बिंदल को सम्मानित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। इस कार्यक्रम का संचालन चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री नानालाल राठौड़ ने किया।

अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का चौथा दिन पर्यावरण शुद्धि दिवस के रूप में समायोजित…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , आश्विन माह के शुक्लपक्ष में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नौ दिनों तक आध्यात्मिक अनुष्ठान का क्रम चल रहा है तो दूसरी ओर अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का क्रम भी संचालित हो रहा है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में इन विभिन्न आध्यात्मिक उपक्रमों से जुड़कर श्रद्धालु अपनी धार्मिक-आध्यात्मिक उन्नति करने का प्रयास कर रहे हैं। पूरे विश्व भर इस समय शक्ति की अधिष्ठात्री देवी की आराधना का क्रम भी चल रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों में इस त्योहार अलग-अलग रूपों में मनाया जा रहा है। गुजरात प्रदेश में इन नौ दिनों में दुर्गापूजा के साथ-साथ गरबे की धूम भी देखने को मिलती है। गुजरात राज्य के डायमण्ड सिटि सूरत में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में महावीर समवसरण में शुक्रवार को भी आचार्यश्री के साथ उपस्थित जनता ने मंगल प्रवचन से पूर्व आध्यात्मिक अनुष्ठान से जुड़ी। लगभग आधे घंटे के आध्यात्मिक अनुष्ठान के उपरान्त जनता को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराया। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को आयारो आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में आत्मा और शरीर दो तत्त्व हैं। आत्मा चैतन्यमय है तो शरीर पुद्गल है। चेतन और अचेतन दोनों का योग होना ही जीवन है। आत्मा और शरीर का अलग हो जाना ही मृत्यु है। चेतन का अचेतन के साथ वियोग हो जाना मृत्यु हो जाती है। आत्मा हमेशा के लिए शरीर से मुक्त हो जाए, वह मोक्ष हो जाता है। स्थूल शरीर के सिवाय दो शरीर और होते हैं। उनमें एक होता है तैजस शरीर है। उससे भी सूक्ष्मतर शरीर है कार्मण शरीर उसे कर्म शरीर भी कहा जाता है। आयारो में कहा गया है कि कर्म शरीर को प्रकंपित करो। ज्ञातव्य है कि यह कार्मण शरीर ही जन्म-मरण का कारण है। आदमी के जीवन में होने वाले प्रत्येक सुख-दुःख हर्ष-विसाद आदि का मूल कारण कार्मण शरीर होता है। इसलिए इसे कारण शरीर भी कहा जाता है। आदमी ज्ञान और संयम के द्वारा इसे कमजोर कर सकते हैं। आदमी के पास सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र है तो इस कारण शरीर को प्रकंपित किया जा सकता है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तीसरे दिन को पर्यावरण शुद्धि दिवस के रूप में समायोजित किया गया। इस कार्यक्रम में उपस्थित डॉ. दयांजलि ठक्कर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन का सौभाग्य मिल रहा है। हम सभी को पर्यावरण को प्रदूषित नहीं, जितना हो संभव हो सके, उसके शुद्धिकरण का प्रयास करें। जितना संभव हो सके पेड़-पौधों को लगाने का प्रयास करें। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तीसरे दिन पर्यावरण शुद्धि दिवस के संदर्भ में पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में अहिंसा और संयम-ये दो तत्त्व रहते हैं तो अनेक समस्याओं का समाधान अपने आप हो सकता है। यह मानव जीवन के व्यवहार के साथ जुड़ा रहे। वृक्षों को अनावश्यक न काटा जाए, इसके लिए आगम में जागरूक किया गया है। वनस्पति और मानव में समानता की बात भी बताई गई है। वनस्पति भी प्राणी है, उसके प्रति संयम रखने का प्रयास हो। बिजली, पानी आदि का जितना संयम किया जा सके, करने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा और संयम के द्वारा पर्यावरण को ही नहीं, अपनी आत्मा को भी शुद्ध बनाया जा सकता है। पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सर्वेश गौतम ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत को प्रस्तुति दी। तेरापंथी सभा-चेन्नई केे अध्यक्ष श्री अशोक खंतग ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। चेन्नई ज्ञानशालाओं के ज्ञानार्थियों व प्रशिक्षिकाओं ने संयुक्त रूप से गीत को प्रस्तुति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। बालक हर्षिल बरड़िया बालसुलभ गीत को प्रस्तुति दी।

अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का चौथा दिन पर्यावरण शुद्धि दिवस के रूप में समायोजित…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , आश्विन माह के शुक्लपक्ष में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नौ दिनों तक आध्यात्मिक अनुष्ठान का क्रम चल रहा है तो दूसरी ओर अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का क्रम भी संचालित हो रहा है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में इन विभिन्न आध्यात्मिक उपक्रमों से जुड़कर श्रद्धालु अपनी धार्मिक-आध्यात्मिक उन्नति करने का प्रयास कर रहे हैं। पूरे विश्व भर इस समय शक्ति की अधिष्ठात्री देवी की आराधना का क्रम भी चल रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों में इस त्योहार अलग-अलग रूपों में मनाया जा रहा है। गुजरात प्रदेश में इन नौ दिनों में दुर्गापूजा के साथ-साथ गरबे की धूम भी देखने को मिलती है। गुजरात राज्य के डायमण्ड सिटि सूरत में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में महावीर समवसरण में शुक्रवार को भी आचार्यश्री के साथ उपस्थित जनता ने मंगल प्रवचन से पूर्व आध्यात्मिक अनुष्ठान से जुड़ी। लगभग आधे घंटे के आध्यात्मिक अनुष्ठान के उपरान्त जनता को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराया। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को आयारो आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में आत्मा और शरीर दो तत्त्व हैं। आत्मा चैतन्यमय है तो शरीर पुद्गल है। चेतन और अचेतन दोनों का योग होना ही जीवन है। आत्मा और शरीर का अलग हो जाना ही मृत्यु है। चेतन का अचेतन के साथ वियोग हो जाना मृत्यु हो जाती है। आत्मा हमेशा के लिए शरीर से मुक्त हो जाए, वह मोक्ष हो जाता है। स्थूल शरीर के सिवाय दो शरीर और होते हैं। उनमें एक होता है तैजस शरीर है। उससे भी सूक्ष्मतर शरीर है कार्मण शरीर उसे कर्म शरीर भी कहा जाता है। आयारो में कहा गया है कि कर्म शरीर को प्रकंपित करो। ज्ञातव्य है कि यह कार्मण शरीर ही जन्म-मरण का कारण है। आदमी के जीवन में होने वाले प्रत्येक सुख-दुःख हर्ष-विसाद आदि का मूल कारण कार्मण शरीर होता है। इसलिए इसे कारण शरीर भी कहा जाता है। आदमी ज्ञान और संयम के द्वारा इसे कमजोर कर सकते हैं। आदमी के पास सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र है तो इस कारण शरीर को प्रकंपित किया जा सकता है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तीसरे दिन को पर्यावरण शुद्धि दिवस के रूप में समायोजित किया गया। इस कार्यक्रम में उपस्थित डॉ. दयांजलि ठक्कर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन का सौभाग्य मिल रहा है। हम सभी को पर्यावरण को प्रदूषित नहीं, जितना हो संभव हो सके, उसके शुद्धिकरण का प्रयास करें। जितना संभव हो सके पेड़-पौधों को लगाने का प्रयास करें। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तीसरे दिन पर्यावरण शुद्धि दिवस के संदर्भ में पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में अहिंसा और संयम-ये दो तत्त्व रहते हैं तो अनेक समस्याओं का समाधान अपने आप हो सकता है। यह मानव जीवन के व्यवहार के साथ जुड़ा रहे। वृक्षों को अनावश्यक न काटा जाए, इसके लिए आगम में जागरूक किया गया है। वनस्पति और मानव में समानता की बात भी बताई गई है। वनस्पति भी प्राणी है, उसके प्रति संयम रखने का प्रयास हो। बिजली, पानी आदि का जितना संयम किया जा सके, करने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा और संयम के द्वारा पर्यावरण को ही नहीं, अपनी आत्मा को भी शुद्ध बनाया जा सकता है। पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सर्वेश गौतम ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत को प्रस्तुति दी। तेरापंथी सभा-चेन्नई केे अध्यक्ष श्री अशोक खंतग ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। चेन्नई ज्ञानशालाओं के ज्ञानार्थियों व प्रशिक्षिकाओं ने संयुक्त रूप से गीत को प्रस्तुति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। बालक हर्षिल बरड़िया बालसुलभ गीत को प्रस्तुति दी।

अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का दूसरा दिन अहिंसा दिवस के रूप में हुआ समायोजित….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारम्भ हो चुका है। इस सप्ताह के दूसरे दिन अर्थात् बुधवार को अहिंसा दिवस के रूप में समायोजित किया गया। महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को अहिंसा यात्रास के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अनासक्त साधक शब्द और स्पर्श को सहन करता है। सहिष्णुता मानवता का एक गुण है और वह साधना भी होती है। मन अथवा शरीर के विपरित स्थिति आने पर भी सम भाव रखते हुए उसे सहन कर लेना एक अच्छी साधना होती है। शब्द भी कई बार ऐसे आते हैं, जो कटु होते हैं, अपमानकारक होते हैं। साधु को भी कटु शब्द सुनने को मिल सकते हैं। वहां साधु को शब्दों को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में बातचीत का काम पड़ता रहता है। बातचीत में कटु शब्द भी प्रयोग हो सकता है, हो सकता है कोई झूठा आरोप भी लगा सकता है। साधु को वैसे शब्दों और उसे सहने का प्रयास करना चाहिए। आज दो अक्टूबर है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का दूसरा दिन अहिंसा दिवस के रूप में समायोजित है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का यह सात दिन अणुव्रत के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। अणुव्रत से जुड़ी हुई संस्थाएं अहिंसा, नैतिकता व नशामुक्ति का यथासंभव प्रचार-प्रसार करती रहें। आदमी यह प्रयास करे कि उसके जीवन में अहिंसा का प्रभाव बना रहे। आदमी की भाषा में, विचार में, व्यवहार में अहिंसा का भाव बना रहे। आज का दिन महात्मा गांधी से भी जुड़ा हुआ है। अहिंसा एक प्रकार की भगवती है, माता है, जीवनदाता है। अहिंसा मानों सभी प्राणियों को अभय बना देती है। अहिंसा शौर्य, वीर्य और बलवती हो, इसका प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने नवरात्र में नौ दिनों होने वाले आध्यात्मिक अनुष्ठान की जानकारी देने के उपरान्त प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के संदर्भ में उपस्थित जनता को प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी कराया। ‘सादर स्मरण शासनमाता भाग-2’ शासनश्री साध्वी कल्पलताजी द्वारा लिखित पुस्तक को जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया। मुनि उदितकुमारजी ने आयम्बिल अनुष्ठान के विषय में जानकारी दी। अहिंसा दिवस के संदर्भ में सूरत के बच्चों ने अपनी प्रस्तुति दी। मुम्बई के घाटकोपर उपाश्रय के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।

अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का दूसरा दिन अहिंसा दिवस के रूप में हुआ समायोजित….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारम्भ हो चुका है। इस सप्ताह के दूसरे दिन अर्थात् बुधवार को अहिंसा दिवस के रूप में समायोजित किया गया। महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को अहिंसा यात्रास के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अनासक्त साधक शब्द और स्पर्श को सहन करता है। सहिष्णुता मानवता का एक गुण है और वह साधना भी होती है। मन अथवा शरीर के विपरित स्थिति आने पर भी सम भाव रखते हुए उसे सहन कर लेना एक अच्छी साधना होती है। शब्द भी कई बार ऐसे आते हैं, जो कटु होते हैं, अपमानकारक होते हैं। साधु को भी कटु शब्द सुनने को मिल सकते हैं। वहां साधु को शब्दों को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में बातचीत का काम पड़ता रहता है। बातचीत में कटु शब्द भी प्रयोग हो सकता है, हो सकता है कोई झूठा आरोप भी लगा सकता है। साधु को वैसे शब्दों और उसे सहने का प्रयास करना चाहिए। आज दो अक्टूबर है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का दूसरा दिन अहिंसा दिवस के रूप में समायोजित है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का यह सात दिन अणुव्रत के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। अणुव्रत से जुड़ी हुई संस्थाएं अहिंसा, नैतिकता व नशामुक्ति का यथासंभव प्रचार-प्रसार करती रहें। आदमी यह प्रयास करे कि उसके जीवन में अहिंसा का प्रभाव बना रहे। आदमी की भाषा में, विचार में, व्यवहार में अहिंसा का भाव बना रहे। आज का दिन महात्मा गांधी से भी जुड़ा हुआ है। अहिंसा एक प्रकार की भगवती है, माता है, जीवनदाता है। अहिंसा मानों सभी प्राणियों को अभय बना देती है। अहिंसा शौर्य, वीर्य और बलवती हो, इसका प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने नवरात्र में नौ दिनों होने वाले आध्यात्मिक अनुष्ठान की जानकारी देने के उपरान्त प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के संदर्भ में उपस्थित जनता को प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी कराया। ‘सादर स्मरण शासनमाता भाग-2’ शासनश्री साध्वी कल्पलताजी द्वारा लिखित पुस्तक को जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया। मुनि उदितकुमारजी ने आयम्बिल अनुष्ठान के विषय में जानकारी दी। अहिंसा दिवस के संदर्भ में सूरत के बच्चों ने अपनी प्रस्तुति दी। मुम्बई के घाटकोपर उपाश्रय के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।

सांप्रदायिक सौहार्द दिवस पर दो आध्यात्मिक महापुरुषों का आत्मीय मिलन….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे स्वामीनारायण संप्रदाय के गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज, अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का हुआ शुभारम्भ, महापुरुषों का दर्शन पुण्याई का प्रतिफल : स्वामी त्यागवल्लभजी, संप्रदाय अलग, किन्तु अहिंसा, संयम, तप सभी के अनुपालनीय : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण वेसु, सूरत (गुजरात) , मानवता के मसीहा, शांतिदूत, अहिंसा यात्रा प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का आध्यात्मिक शुभारम्भ हुआ। इस सप्ताह का प्रथम दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के रूप में समायोजित हुआ। जिसमें हरिधाम सोखड़ा योगी डिवाइन सोसायटी के अध्यक्ष प्रकट गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज व स्वामी त्यागवल्लभजी आदि शिष्यों के साथ आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे तो मानों सांप्रदायिक सौहार्द फलीभूत हो उठा। श्वेत वस्त्र में आचार्यश्री व उनके शिष्य तो केशरिया वस्त्र में प्रेमस्वरूप स्वामीजी व उनके शिष्यों के मिलन से महावीर समवसरण में अद्भुत दृश्य उत्पन्न कर रहा था। भारत के धाराओं का आध्यात्मिक मिलन जन-जन को प्रफुल्लित बना रहा था। कार्यक्रम के शुभारम्भ से पूर्व आचार्यश्री का तथा स्वामीजी का प्रवास कक्ष में वार्तालाप का क्रम भी रहा, जिसमें धर्म, अध्यात्म, देश, संस्कृति आदि विभिन्न विषयों का पर चर्चा-वार्ता हुई। महावीर समवसरण में आयोजित अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारम्भ शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। सूरत के अणुव्रत कार्यकर्ताओं ने अणुव्रत गीत को प्रस्तुति दी। अणुव्रत समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री विमल लोढ़ा, अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के उपाध्यक्ष श्री राजेश सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्री विनोद बांठिया ने प्रेमस्वरूप स्वामी व स्वामी त्यागवल्लभजी का परिचय प्रस्तुत किया। हरिधाम सोखड़ा योगी डिवाइन सोसायटी के स्वामी त्यागवलल्लभजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज बहुत सौभाग्य कि बात है कि एक दो महापुरुषों के दर्शन का अवसर जनता को मिली है। यह हजारों वर्षों के पुण्यों से यह सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। आज सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के अवसर पर गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज द्वारा लिखित मंगल पत्र का वाचन भी किया। उन्होंने आगे कहा कि मुझे जानकारी मिली कि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने हजारों किलोमीटर की पदयात्रा कर जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश दिए हैं। विकृति की दिशा में आगे बढ़ रहे समाज को ऐसे महापुरुषों की मंगल प्रेरणा से अध्यात्म और साधना की ओर बढ़ाया जा सकता है। इस दौरान स्वामीजी ने राजकोट में स्थित अपने परिसर में पधारने की मधुर अर्ज भी की। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते कहा कि शास्त्रों की कल्याणी वाणियां जीवन में आ जाएं तो जीवन का कल्याण हो सकता है। शास्त्रों में धर्म को उत्कृष्ट मंगल बताया गया है। दुनिया में दूसरों के लिए तथा स्वयं के लिए भी मंगलकामना करता है। मंगल के लिए शुभ मुहूर्त आदि देखने का प्रयास होता है, पदार्थों का प्रयोग भी होता है, किन्तु ये सारे छोटे मंगल हैं, सबसे बड़ा मंगल धर्म होता है। प्रश्न हो सकता है कि जैन धर्म, सनातन, स्वामीनारायण, सिक्ख आदि धर्म मंगल होता है। यहां बताया गया कि अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल होता है। मानव जीवन में संप्रदाय का भी अपना महत्त्व है। संप्रदाय का साया मिलता है तो अनुकंपा प्राप्त हो सकती है। तेरापंथ के प्रथम गुरु आचार्यश्री भिक्षु स्वामी और इस प्रकार हमारे नवमे गुरु आचार्यश्री तुलसी हुए। उन्होंने कहा कि कोई जैन बने या न बने अपने धर्म में रहते हुए भी छोटे-छोटे नियमों को स्वीकार कर अपने जीवन उन्नत बनाया जा सकता है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह हर जगह स्वीकार किया जाता है। वेश-भूषा और परिवेश में कुछ अंतर अवश्य हो सकता है कि जहां अहिंसा, संयम, सच्चाई की बात होती है, वहां लगभग समानता होती है। मर्यादाएं, व्यवस्थाएं परिवेश अलग-अलग हो सकते हैं। संप्रदाय तो हमने स्वीकार कर लिया, लेकिन जीवन में धर्म नहीं आया तो फिर क्या अर्थ। अहिंसा का पालन, इन्द्रियों का संयम, तपस्या आदि का लाभ सभी को प्राप्त होता है। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का प्रारम्भ हुआ है। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन चलाया और आज कितने अजैन लोग भी उससे जुड़े हुए हैं। अणुव्रत को बाजार, चौराहों, विद्यालयों और जेल में बंद कैदियों के बीच भी ले जाया जाए, ताकि उनका जीवन भी अच्छा बन सके। ये छोटे-छोटे नियम जैसे मैं नशा नहीं करूंगा, मैं निरपराध की हत्या नहीं करूंगा, ईमानदार रहूंगा, पर्यावरण की रक्षा करूंगा आदि-आदि नियम आदमी के जीवन में आते हैं तो जीवन अच्छा बन सकता है। उद्बोधन सप्ताह का प्रथम दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस है तो आज दो संप्रदायों का मिलन हो रहा है। आज आप सभी से मिलना हुआ, बहुत अच्छा हुआ। हमारी आपके प्रति आध्यात्मिक मंगलकामनाएं हैं। चतुर्दशी के संदर्भ में आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन किया। तदुपरान्त समस्त चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री के मंगलपाठ के साथ कार्यक्रम सुसम्पन्न हुआ।

सांप्रदायिक सौहार्द दिवस पर दो आध्यात्मिक महापुरुषों का आत्मीय मिलन….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे स्वामीनारायण संप्रदाय के गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज, अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का हुआ शुभारम्भ, महापुरुषों का दर्शन पुण्याई का प्रतिफल : स्वामी त्यागवल्लभजी, संप्रदाय अलग, किन्तु अहिंसा, संयम, तप सभी के अनुपालनीय : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण वेसु, सूरत (गुजरात) , मानवता के मसीहा, शांतिदूत, अहिंसा यात्रा प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का आध्यात्मिक शुभारम्भ हुआ। इस सप्ताह का प्रथम दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के रूप में समायोजित हुआ। जिसमें हरिधाम सोखड़ा योगी डिवाइन सोसायटी के अध्यक्ष प्रकट गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज व स्वामी त्यागवल्लभजी आदि शिष्यों के साथ आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे तो मानों सांप्रदायिक सौहार्द फलीभूत हो उठा। श्वेत वस्त्र में आचार्यश्री व उनके शिष्य तो केशरिया वस्त्र में प्रेमस्वरूप स्वामीजी व उनके शिष्यों के मिलन से महावीर समवसरण में अद्भुत दृश्य उत्पन्न कर रहा था। भारत के धाराओं का आध्यात्मिक मिलन जन-जन को प्रफुल्लित बना रहा था। कार्यक्रम के शुभारम्भ से पूर्व आचार्यश्री का तथा स्वामीजी का प्रवास कक्ष में वार्तालाप का क्रम भी रहा, जिसमें धर्म, अध्यात्म, देश, संस्कृति आदि विभिन्न विषयों का पर चर्चा-वार्ता हुई। महावीर समवसरण में आयोजित अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारम्भ शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। सूरत के अणुव्रत कार्यकर्ताओं ने अणुव्रत गीत को प्रस्तुति दी। अणुव्रत समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री विमल लोढ़ा, अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के उपाध्यक्ष श्री राजेश सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्री विनोद बांठिया ने प्रेमस्वरूप स्वामी व स्वामी त्यागवल्लभजी का परिचय प्रस्तुत किया। हरिधाम सोखड़ा योगी डिवाइन सोसायटी के स्वामी त्यागवलल्लभजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज बहुत सौभाग्य कि बात है कि एक दो महापुरुषों के दर्शन का अवसर जनता को मिली है। यह हजारों वर्षों के पुण्यों से यह सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। आज सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के अवसर पर गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज द्वारा लिखित मंगल पत्र का वाचन भी किया। उन्होंने आगे कहा कि मुझे जानकारी मिली कि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने हजारों किलोमीटर की पदयात्रा कर जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश दिए हैं। विकृति की दिशा में आगे बढ़ रहे समाज को ऐसे महापुरुषों की मंगल प्रेरणा से अध्यात्म और साधना की ओर बढ़ाया जा सकता है। इस दौरान स्वामीजी ने राजकोट में स्थित अपने परिसर में पधारने की मधुर अर्ज भी की। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते कहा कि शास्त्रों की कल्याणी वाणियां जीवन में आ जाएं तो जीवन का कल्याण हो सकता है। शास्त्रों में धर्म को उत्कृष्ट मंगल बताया गया है। दुनिया में दूसरों के लिए तथा स्वयं के लिए भी मंगलकामना करता है। मंगल के लिए शुभ मुहूर्त आदि देखने का प्रयास होता है, पदार्थों का प्रयोग भी होता है, किन्तु ये सारे छोटे मंगल हैं, सबसे बड़ा मंगल धर्म होता है। प्रश्न हो सकता है कि जैन धर्म, सनातन, स्वामीनारायण, सिक्ख आदि धर्म मंगल होता है। यहां बताया गया कि अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल होता है। मानव जीवन में संप्रदाय का भी अपना महत्त्व है। संप्रदाय का साया मिलता है तो अनुकंपा प्राप्त हो सकती है। तेरापंथ के प्रथम गुरु आचार्यश्री भिक्षु स्वामी और इस प्रकार हमारे नवमे गुरु आचार्यश्री तुलसी हुए। उन्होंने कहा कि कोई जैन बने या न बने अपने धर्म में रहते हुए भी छोटे-छोटे नियमों को स्वीकार कर अपने जीवन उन्नत बनाया जा सकता है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह हर जगह स्वीकार किया जाता है। वेश-भूषा और परिवेश में कुछ अंतर अवश्य हो सकता है कि जहां अहिंसा, संयम, सच्चाई की बात होती है, वहां लगभग समानता होती है। मर्यादाएं, व्यवस्थाएं परिवेश अलग-अलग हो सकते हैं। संप्रदाय तो हमने स्वीकार कर लिया, लेकिन जीवन में धर्म नहीं आया तो फिर क्या अर्थ। अहिंसा का पालन, इन्द्रियों का संयम, तपस्या आदि का लाभ सभी को प्राप्त होता है। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का प्रारम्भ हुआ है। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन चलाया और आज कितने अजैन लोग भी उससे जुड़े हुए हैं। अणुव्रत को बाजार, चौराहों, विद्यालयों और जेल में बंद कैदियों के बीच भी ले जाया जाए, ताकि उनका जीवन भी अच्छा बन सके। ये छोटे-छोटे नियम जैसे मैं नशा नहीं करूंगा, मैं निरपराध की हत्या नहीं करूंगा, ईमानदार रहूंगा, पर्यावरण की रक्षा करूंगा आदि-आदि नियम आदमी के जीवन में आते हैं तो जीवन अच्छा बन सकता है। उद्बोधन सप्ताह का प्रथम दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस है तो आज दो संप्रदायों का मिलन हो रहा है। आज आप सभी से मिलना हुआ, बहुत अच्छा हुआ। हमारी आपके प्रति आध्यात्मिक मंगलकामनाएं हैं। चतुर्दशी के संदर्भ में आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन किया। तदुपरान्त समस्त चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री के मंगलपाठ के साथ कार्यक्रम सुसम्पन्न हुआ।

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण की मंगल सन्निधि में प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का भव्य शुभारम्भ….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times महातपस्वी की मंगल सन्निधि में पहुंचे नेपाल के प्रथम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. रामबरण यादव* *-आप जैसे महान विभूति दिखाते हैं राह : नेपाल के पूर्व राष्ट्रपति* *-प्रेक्षाध्यान पद्धति सभी के लिए हितकारी : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण* *30.09.2024, सोमवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में सोमवार को प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का भव्य एवं आध्यात्मिक शुभारम्भ हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में नेपाल के प्रथम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. रामबरण यादव भी उपस्थित हुए। प्रेक्षाध्यान के पचासवें वर्ष के प्रारम्भ के अवसर पर आचार्यश्री की प्रेरणा से प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का डायमण्ड व सिल्क सिटि सूरत के महावीर समवसरण से प्रारम्भ होकर वर्ष 2025 के 30 सितम्बर तक चलेगा। महावीर समवसरण में सोमवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के लिए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पधारे तो पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वीवृंद ने प्रेक्षा गीत का संगान किया। सूरत चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा, अध्यात्म साधना केन्द्र के डायरेक्टर श्री केसी जैन, प्रेक्षा इण्टरनेशनल के अयध्यक्ष श्री अरविंद संचेती, जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अमरचंद लुंकड़ ने अपनी-अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष शुभारम्भ के अवसर पर उपस्थित जनता को प्रेक्षाध्यान के विषय में प्रेरणा प्रदान की। नेपाल के पूर्व प्रथम राष्ट्रपति डॉ. रामबरण यादव ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन करने अवसर प्राप्त हो रहा है। अभी पूरा विश्व घृणा के भावों को दूर करने के लिए संघर्ष कर रही है, ऐसी स्थिति में आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे महान संत की परम आवश्यकता है। मैं इस पावन अवसर पर मैं शुभकामना देता हूं कि भगवान महावीर की कृपा सभी पर बना रहे। मैं आचार्यश्री के विचारों से प्रभावित हूं और उनके दर्शन करने यहां आया हूं। आप जैसे विभूति ही हमें राह दिखा सकते हैं। प्रेक्षा इण्टरनेशनल के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमणजी ने इस वर्ष के शुभारम्भ के संदर्भ में आचार्यश्री द्वारा प्रदान किए आशीर्वचनों का वाचन किया। तदुपरान्त युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित विशाल जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि अध्यात्म की साधना में शरीर के प्रति ममत्व भी छोड़ने की बात होती है। आदमी का ममत्व पदार्थों से होता है तो उससे भी ज्यादा ममत्व आदमी का अपने शरीर से भी हो सकता है। इसलिए अध्यात्म की साधना में अपने शरीर के प्रति ममत्व नहीं रखना, उच्च कोटि की साधना होती है। अध्यात्म की साधना में अहंकार और ममकार का भाव त्याज्य माना गया है। आज से प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। एक वर्ष की कालावधि है। सन् 1975 में परम पूज्य गुरुदेव तुलसी का ग्रीन हाउस में हो रहा था और वहां इस पद्धति का नामकरण हुआ था-प्रेक्षाध्यान। दुनिया में अनेक नामों से ध्यान पद्धतियां चल रही हैं। हमारे तेरापंथ धर्मसंघ में परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के सान्निध्य में प्रारम्भ होने वाले इस कार्य में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी (तत्कालीन मुनि नथमलजी स्वामी ‘टमकोर’) मुख्य व्यक्ति थे। इसके प्रधान समायोजक आचार्यश्री महाप्रज्ञजी को देख सकते हैं। प्रेक्षाध्यान पद्धति हमारे धर्मसंघ का एक योगदान है। जैन विश्व भारती के तुलसी अध्यात्म नीडम में शिविर लगते तो आचार्यश्री महाप्रज्ञजी वहीं विराज जाते और ध्यान का प्रयोग कराते। अध्यात्म साधना केन्द्र भी ध्यान-साधना का केन्द्र रहा है। अहमदाबाद का प्रेक्षा विश्व भारती भी प्रेक्षाध्यान से जुड़ा हुआ है। अनेकानेक विदेशी भी इस उपक्रम से जुड़े हुए हैं। इन वर्षों में प्रेक्षाध्यान का रूप काफी निखरा हुआ प्रतीत हो रहा है। इस पद्धति से कोई भी जैन-अजैन व्यक्ति जुड़ सकता है। इस प्रकार देश-विदेश में हुआ है। आज सोश्यल मिडिया और ऑनलाइन क्लास आदि के माध्यम से अधुनिक उपकरणों से सुविधा हो गई है। आज डॉ. रामबरणजी यादव का आगमन हुआ है। नेपाल में मिलना हुआ था। प्रेक्षाध्यान कायोत्सर्ग के रूप में वृद्ध लोगों के लिए भी काफी सहायक भी है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का स्मरण करें, गुरुदेव तुलसी को याद करें। सभी प्रेक्षाध्यान का यथासंभव प्रचार-प्रसार के साथ करने का भी प्रयास करना चाहिए। यह वर्ष अच्छे ढंग से चले, ऐसी मंगलकामना। इस अवसर पर आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को कुछ समय के लिए प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी कराया। प्रेक्षाध्यान के शिविरार्थियों को आचार्यश्री ने उपसंपदा प्रदान की। कार्यक्रम में लिम्बायत विधायक श्रीमती संगीताबेन पाटिल ने आचार्यश्री के दर्शन करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन प्रेक्षा इण्टरनेशनल के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमणजी ने किया।

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण की मंगल सन्निधि में प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का भव्य शुभारम्भ….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times महातपस्वी की मंगल सन्निधि में पहुंचे नेपाल के प्रथम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. रामबरण यादव* *-आप जैसे महान विभूति दिखाते हैं राह : नेपाल के पूर्व राष्ट्रपति* *-प्रेक्षाध्यान पद्धति सभी के लिए हितकारी : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण* *30.09.2024, सोमवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में सोमवार को प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का भव्य एवं आध्यात्मिक शुभारम्भ हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में नेपाल के प्रथम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. रामबरण यादव भी उपस्थित हुए। प्रेक्षाध्यान के पचासवें वर्ष के प्रारम्भ के अवसर पर आचार्यश्री की प्रेरणा से प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का डायमण्ड व सिल्क सिटि सूरत के महावीर समवसरण से प्रारम्भ होकर वर्ष 2025 के 30 सितम्बर तक चलेगा। महावीर समवसरण में सोमवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के लिए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पधारे तो पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वीवृंद ने प्रेक्षा गीत का संगान किया। सूरत चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा, अध्यात्म साधना केन्द्र के डायरेक्टर श्री केसी जैन, प्रेक्षा इण्टरनेशनल के अयध्यक्ष श्री अरविंद संचेती, जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अमरचंद लुंकड़ ने अपनी-अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष शुभारम्भ के अवसर पर उपस्थित जनता को प्रेक्षाध्यान के विषय में प्रेरणा प्रदान की। नेपाल के पूर्व प्रथम राष्ट्रपति डॉ. रामबरण यादव ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन करने अवसर प्राप्त हो रहा है। अभी पूरा विश्व घृणा के भावों को दूर करने के लिए संघर्ष कर रही है, ऐसी स्थिति में आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे महान संत की परम आवश्यकता है। मैं इस पावन अवसर पर मैं शुभकामना देता हूं कि भगवान महावीर की कृपा सभी पर बना रहे। मैं आचार्यश्री के विचारों से प्रभावित हूं और उनके दर्शन करने यहां आया हूं। आप जैसे विभूति ही हमें राह दिखा सकते हैं। प्रेक्षा इण्टरनेशनल के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमणजी ने इस वर्ष के शुभारम्भ के संदर्भ में आचार्यश्री द्वारा प्रदान किए आशीर्वचनों का वाचन किया। तदुपरान्त युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित विशाल जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि अध्यात्म की साधना में शरीर के प्रति ममत्व भी छोड़ने की बात होती है। आदमी का ममत्व पदार्थों से होता है तो उससे भी ज्यादा ममत्व आदमी का अपने शरीर से भी हो सकता है। इसलिए अध्यात्म की साधना में अपने शरीर के प्रति ममत्व नहीं रखना, उच्च कोटि की साधना होती है। अध्यात्म की साधना में अहंकार और ममकार का भाव त्याज्य माना गया है। आज से प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। एक वर्ष की कालावधि है। सन् 1975 में परम पूज्य गुरुदेव तुलसी का ग्रीन हाउस में हो रहा था और वहां इस पद्धति का नामकरण हुआ था-प्रेक्षाध्यान। दुनिया में अनेक नामों से ध्यान पद्धतियां चल रही हैं। हमारे तेरापंथ धर्मसंघ में परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के सान्निध्य में प्रारम्भ होने वाले इस कार्य में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी (तत्कालीन मुनि नथमलजी स्वामी ‘टमकोर’) मुख्य व्यक्ति थे। इसके प्रधान समायोजक आचार्यश्री महाप्रज्ञजी को देख सकते हैं। प्रेक्षाध्यान पद्धति हमारे धर्मसंघ का एक योगदान है। जैन विश्व भारती के तुलसी अध्यात्म नीडम में शिविर लगते तो आचार्यश्री महाप्रज्ञजी वहीं विराज जाते और ध्यान का प्रयोग कराते। अध्यात्म साधना केन्द्र भी ध्यान-साधना का केन्द्र रहा है। अहमदाबाद का प्रेक्षा विश्व भारती भी प्रेक्षाध्यान से जुड़ा हुआ है। अनेकानेक विदेशी भी इस उपक्रम से जुड़े हुए हैं। इन वर्षों में प्रेक्षाध्यान का रूप काफी निखरा हुआ प्रतीत हो रहा है। इस पद्धति से कोई भी जैन-अजैन व्यक्ति जुड़ सकता है। इस प्रकार देश-विदेश में हुआ है। आज सोश्यल मिडिया और ऑनलाइन क्लास आदि के माध्यम से अधुनिक उपकरणों से सुविधा हो गई है। आज डॉ. रामबरणजी यादव का आगमन हुआ है। नेपाल में मिलना हुआ था। प्रेक्षाध्यान कायोत्सर्ग के रूप में वृद्ध लोगों के लिए भी काफी सहायक भी है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का स्मरण करें, गुरुदेव तुलसी को याद करें। सभी प्रेक्षाध्यान का यथासंभव प्रचार-प्रसार के साथ करने का भी प्रयास करना चाहिए। यह वर्ष अच्छे ढंग से चले, ऐसी मंगलकामना। इस अवसर पर आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को कुछ समय के लिए प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी कराया। प्रेक्षाध्यान के शिविरार्थियों को आचार्यश्री ने उपसंपदा प्रदान की। कार्यक्रम में लिम्बायत विधायक श्रीमती संगीताबेन पाटिल ने आचार्यश्री के दर्शन करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन प्रेक्षा इण्टरनेशनल के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमणजी ने किया।

आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दान की गतियों को भी किया व्याख्यायित….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात), ताप्ती नदी के तट पर बसा सूरत शहर भारत के पश्चिम भाग में होने के कारण अरब सागर से भी अति निकट है। इस कारण यहां के वातावरण में भी समुद्रता की निकटता वाली स्थिति सहज ही देखने को मिलती है। बरसात न हो तो उमस भरी गर्मी लोगों को बेहाल करती है और बरसात हो जाए तो वह सामान्यतया लोगों को परेशान करती है। गत दो-तीन दिनों से बरसात का दौर जारी है। कभी तीव्र तो कभी मंद और कभी पूरी तरह बंद होने वाली बरसात लोगों को उमस वाली गर्मी से राहत प्रदान कर रही है। शुक्रवार को भी प्रायः पूरे दिन आसमान में बादल छाए रहे और यदा-कदा वर्षा का क्रम जारी रहा, किन्तु जन-जन का कल्याण करने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का मंगल प्रवचन ही नहीं, श्रद्धालुओं व बाहर से आने वाले संघबद्ध लोगों को दर्शन, सेवा, उपासना पर मंगल आशीष देने का क्रम यथावत रहा। मानवता के मसीहा, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि गृहस्थ के जीवन काम और अर्थ दो तत्त्व होते हैं। धर्म और मोक्ष तत्त्व भी प्राप्त हो सकते हैं। काम और अर्थ रूपी मानव जीवन की दुपहिया गाड़ी पर धर्म और मोक्ष का अंकुश रहता है तो मानव जीवन की दुपहिया गाड़ी अच्छे ढंग से चल सकती है। अगर निरंकुश हो जाए, इस पर किसी प्रकार का नियंत्रण न हो तो मानव दुःखों के गर्त जाकर गिर सकता है। काम मानव जीवन का साध्य बन जाता है और उसका साधन बनता है अर्थ। ये दोनों आदमी के जीवन की सांसारिक बातें हो जाती हैं। गृहस्थ जीवन में आदमी अर्थ का अर्जन करता है और उसका उपयोग भी करता है। कोई भोग में उपयोग करता है तो कोई दान में भी उपयोग करता है। संस्कृत साहित्य में धन की तीन गतियां बताई गई हैं- दान, भोग और नाश। जो आदमी धन का न तो दान देता है और न ही भोग करता है तो उस अर्थ का नाश भी हो सकता है। मानव दान कहां देता है, यह विवेक की बात होती है। कोई सामाजिक कार्य में यथा विद्यालयों में, चिकित्सालयों में, गरीबों को, गौशाला, प्याऊ, रुग्णोें आदि की सेवा आदि में दान देना लौकिक दान है और सामाजिक क्षेत्र का दान होता है। इसमें आदमी की दयालुता प्रकाशित होती है। कहीं कोई आपराधिक गतिविधियों को चलाने में अर्थ को देता है। कोई-कोई आदमी धर्म आदि के कार्यों में दान करता है। धार्मिक गतिविधियों में दान देना बहुत अच्छी बात होती है। धार्मिक साहित्य के प्रकाशन आदि में भी दान दिया जाता है। आदमी खुद के जीवन को अच्छे ढंग से चलाने के लिए अर्थ का खर्च करता है, वह उसका भोग करता है। जो आदमी न दान करता है न ही भोग करता है, उसके अर्थ अर्थात् धन का कभी नाश भी हो सकता है। जो आदमी स्वयं को अमर के समान मानकर काम और अर्थ में आसक्ति करता है, उसके जीवन की दुपहिया गर्त की ओर जा सकती है। इसलिए अर्थ और काम पर धर्म व मोक्ष का अंकुश रखने का प्रयास करे, ताकि जीवन सुगति को प्राप्त हो सके। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया। अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दान की गतियों को भी किया व्याख्यायित….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात), ताप्ती नदी के तट पर बसा सूरत शहर भारत के पश्चिम भाग में होने के कारण अरब सागर से भी अति निकट है। इस कारण यहां के वातावरण में भी समुद्रता की निकटता वाली स्थिति सहज ही देखने को मिलती है। बरसात न हो तो उमस भरी गर्मी लोगों को बेहाल करती है और बरसात हो जाए तो वह सामान्यतया लोगों को परेशान करती है। गत दो-तीन दिनों से बरसात का दौर जारी है। कभी तीव्र तो कभी मंद और कभी पूरी तरह बंद होने वाली बरसात लोगों को उमस वाली गर्मी से राहत प्रदान कर रही है। शुक्रवार को भी प्रायः पूरे दिन आसमान में बादल छाए रहे और यदा-कदा वर्षा का क्रम जारी रहा, किन्तु जन-जन का कल्याण करने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का मंगल प्रवचन ही नहीं, श्रद्धालुओं व बाहर से आने वाले संघबद्ध लोगों को दर्शन, सेवा, उपासना पर मंगल आशीष देने का क्रम यथावत रहा। मानवता के मसीहा, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि गृहस्थ के जीवन काम और अर्थ दो तत्त्व होते हैं। धर्म और मोक्ष तत्त्व भी प्राप्त हो सकते हैं। काम और अर्थ रूपी मानव जीवन की दुपहिया गाड़ी पर धर्म और मोक्ष का अंकुश रहता है तो मानव जीवन की दुपहिया गाड़ी अच्छे ढंग से चल सकती है। अगर निरंकुश हो जाए, इस पर किसी प्रकार का नियंत्रण न हो तो मानव दुःखों के गर्त जाकर गिर सकता है। काम मानव जीवन का साध्य बन जाता है और उसका साधन बनता है अर्थ। ये दोनों आदमी के जीवन की सांसारिक बातें हो जाती हैं। गृहस्थ जीवन में आदमी अर्थ का अर्जन करता है और उसका उपयोग भी करता है। कोई भोग में उपयोग करता है तो कोई दान में भी उपयोग करता है। संस्कृत साहित्य में धन की तीन गतियां बताई गई हैं- दान, भोग और नाश। जो आदमी धन का न तो दान देता है और न ही भोग करता है तो उस अर्थ का नाश भी हो सकता है। मानव दान कहां देता है, यह विवेक की बात होती है। कोई सामाजिक कार्य में यथा विद्यालयों में, चिकित्सालयों में, गरीबों को, गौशाला, प्याऊ, रुग्णोें आदि की सेवा आदि में दान देना लौकिक दान है और सामाजिक क्षेत्र का दान होता है। इसमें आदमी की दयालुता प्रकाशित होती है। कहीं कोई आपराधिक गतिविधियों को चलाने में अर्थ को देता है। कोई-कोई आदमी धर्म आदि के कार्यों में दान करता है। धार्मिक गतिविधियों में दान देना बहुत अच्छी बात होती है। धार्मिक साहित्य के प्रकाशन आदि में भी दान दिया जाता है। आदमी खुद के जीवन को अच्छे ढंग से चलाने के लिए अर्थ का खर्च करता है, वह उसका भोग करता है। जो आदमी न दान करता है न ही भोग करता है, उसके अर्थ अर्थात् धन का कभी नाश भी हो सकता है। जो आदमी स्वयं को अमर के समान मानकर काम और अर्थ में आसक्ति करता है, उसके जीवन की दुपहिया गर्त की ओर जा सकती है। इसलिए अर्थ और काम पर धर्म व मोक्ष का अंकुश रखने का प्रयास करे, ताकि जीवन सुगति को प्राप्त हो सके। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया। अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

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