आचार्यश्री ने की दिल्ली में सन् 2027 के चातुर्मास की घोषणा…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times उपभोग–परिभोग का सीमाकरण आवश्यक : आचार्य महाश्रमण* *चातुर्मास की अर्ज करने दिल्ली से पहुंचे विधानसभा स्पीकर रामनिवास गोयल* *जैन एकता के बिंदुओं को शांतिदूत ने किया व्याख्यायित* *29.09.2024, रविवार, सूरत (गुजरात)* दिल्ली जैन समाज के लिए आज का दिन चिरस्मरणीय बन गया जब जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने सन् 2027 चातुर्मास देश की राजधानी दिल्ली में करने की घोषणा की। इन दिनों संयम विहार चातुर्मास स्थल देश भर के श्रद्धालुओं से जनाकीर्ण बना हुआ है वही गत दो दिनों से राजधानी दिल्ली ने वृहद संख्या में श्रावक समाज गुरु चरणों में आगामी चातुर्मास की अर्ज के साथ उपस्थित है। जैन समाज के निवेदन के साथ मानों दिल्ली का सकल समाज जुड़ा हुआ है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखने को मिला जब दिल्ली विधान सभा अध्यक्ष श्री रामनिवास गोयल एवं राज्य सभा सांसद श्री लहरसिंह सिरोहिया भी दिल्ली वासियों के साथ इस अर्ज में शामिल होने हेतु आज उपस्थित थे। दिल्ली वासियों की मनोकामना को साकार रूप देते हुए आचार्यश्री ने जैसे ही सन् 2027 का चातुर्मास दिल्ली में करने की घोषणा की हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने जय जय ज्योतिचरण के नारों से परिसर को गुंजायमान कर दिया। पूर्व में आचार्यश्री का सन् 2025 का चतुर्मास अहमदाबाद, सन् 2026 का लाडनूं (राजस्थान) में घोषित है इसी कड़ी में अब दिल्ली भी जुड़ गया है। महावीर समवसरण में आगम व्याख्या के अंतर्गत मंगल प्रवचन में धर्म देशना देते हुए आचार्यश्री ने कहा– व्यक्ति के भीतर में अनेक संज्ञाएँ व वृतियां होती है, दुर्वृतियाँ व सद्वृतियाँ भी। गुस्सा, अहंकार, लोभ आदि दुर्वृतियों की श्रेणी में व संतोष, शांति व निर्लोभता सही वृत्तियों की श्रेणी में आते है। वर्तमान में साधु साध्वियों में भी पूर्ण कषाय का विलय नहीं होता पर वे सुप्त अवस्था में रहते हैं, कभी अल्प व कभी ज्यादा। परिग्रह की बुद्धि का त्याग करने वाला परिग्रह का त्याग कर देता है। परिग्रह के छूटने के साथ उसका ममत्व व परिग्रह भी कम हो जाता है, भीतरी ममत्व छूटने से बाहरी ममत्व भी छूट जाता है। दुर्वृतियों के कारण व्यक्ति अपराध में भी चला जा सकता है। गरीबी भी उसका एक निमित्त बन सकती है। उपादान मूल व निमित उसका कारण है। राग-द्वेष का निमित मिल जाने से ममत्व की वृद्धि हो जाती है। व्यक्ति इच्छाओं का उपभोग–परिभोग का सीमाकरण करे यह आवश्यक है। बारह व्रत हमारी जीवन शैली को परिस्कृत बना देता है। व्यक्ति के भीतर अनासक्ति की चेतना का विकास हो। भक्तामर के एक श्लोक का उल्लेख करते हुए गुरुदेव ने कहा कि भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का प्रसिद्ध स्तोत्र। जैन एकता के कई बिंदुओं में एक भक्तामर है। नवकार महामंत्र सभी स्वीकार करते है। श्वेतांबर हो या दिगंबर परंपरा भक्तामर दोनो अम्नायाओं में मान्य है। यह जैन एकता का तत्व है। इसी प्रकार तत्वार्थ सूत्र जो उमास्वाति द्वारा लिखित है। सैद्धांतिक ग्रंथ है जो दोनों परंपराओं में मान्य है। भगवान महावीर की निर्वाण शताब्दी आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व दिल्ली में वृहद रूप में मनाई गई थी। उस समय में जैन शासन की एकता का एक रूप सामने आया था। एक ग्रंथ श्रमण सुत्तम, जैन प्रतीक एवं जैन ध्वज का यह पचरंगा रूप सभी उस समय सामने आए थे। वर्तमान में भी महावीर जयंती का समारोह सकल संप्रदायों में एक साथ मनाया जाता है। संवतसरी और दसलक्षण पर्व के पश्चात क्षमापना पर्व भी एक साथ मनाया जाता है। कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने सारगर्भित वक्तव्य प्रदान किया। सूरत के विधायक श्री संदीप देसाई, श्री चन्द्र किशोर झा, श्री अशोक कुमार बैद ने अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ किशोर मंडल सूरत के सदस्यों ने चौबीसी के गीत का संगान किया। साथ ही बारडोली की श्रीमति ललिता गणेशलाला कुमठ ने 41 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। दिल्ली पधारने के संदर्भ में दिल्ली विधानसभा स्पीकर श्री रामनिवास गोयल ने आचार्य श्री से दिल्ली पधारने हेतु अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी एवं दिल्ली में चातुर्मास हेतु अर्ज की। राज्यसभा सांसद श्री लहरसिंह सिरोहिया, पंजाब केसरी की चेयर पर्सन श्रीमती किरण चोपड़ा, श्री सुखराज सेठिया, तेरापंथ महासभा अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया आदि दिल्ली से समागत गणमान्य वक्ताओं ने भी अपना निवेदन व्यक्त किया।