
सुरेन्द्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
Key Line Times
कोबा, गांधीनगर (गुजरात) ,गुजरात की धरा पर लगातार दो चतुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी 6 नवम्बर को कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती से महामंगल प्रस्थान कर पुनः शहरों, कस्बों, गांवों व नगरों में रहने वाली जनता को आध्यात्मिक आलोक से आलोकित करेंगे। हालांकि वर्ष 2025 के चतुर्मास की सम्पन्नता में एक दिवस और शेष बचा है, किन्तु अपने आराध्य की विदाई का प्रसंग मानों प्रत्येक अहमदाबादवासी श्रद्धालु के हृदय को द्रवित बना रहा है। श्रद्धा व निष्ठा से चार महीने तक अपने आराध्य की सेवा में तल्लीन रहने वाले श्रद्धालु मानों भावुक बने हुए हैं।मंगलवार को भी ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में वीर भिक्षु के परंपर पट्टधर, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अहमदाबादवासियों की ओर से मंगलभावना समारोह का समायोजन किया गया, जिसमें अहमदबादवासियों ने अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावविह्वल भावों को अभिव्यक्ति देते हुए बार-बार मानों विहार न करने की प्रार्थना कर रहे थे। यह भावुक क्षण जन-जन को भावविभोर बना रहा था। मंगलवार को मुख्य प्रवचन से पूर्व ही मंगलभावना समारोह का शुभारम्भ हुआ। सर्वप्रथम अहमदाबाद ज्ञानशालाओं की प्रशिक्षिकाओं ने गीत के माध्यम से अपनी भावनाओं को प्रस्तुति दी। श्री बाबूलाल सेखानी, श्री छत्रसिंह बोथरा, श्री नानालाल कोठारी, श्री मनोहरलाल कोठारी, श्री महावीर दुगड़, श्री जवेरीलाल संकलेचा, श्री विमल घीया, श्री पारस कोठारी, श्री बाबूलाल चौपड़ा, श्रीमती अनिता कोठारी, श्री निर्मल बोथरा, श्री पंकज घीया, श्री विमल चोरड़िया, श्री रोहित सेठिया, श्री निरंजन गंग, श्रीमती निशु नौलखा, श्री राकेश सिपानी, श्री अशोक सेठिया, श्री विकास पितलिया तथा प्रवास व्यवस्था समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री नरेन्द्र पोरवाल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ किशोर मण्डल-अहमदाबाद ने गीत के माध्यम से अपनी भावनाओं को प्रस्तुति दी। उपासक श्रेणी की ओर से श्री डालमचंद नौलखा व उपासक श्रेणी के अनेक सदस्यों ने गीत का संगान किया।शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि धर्म की बहुत सुन्दर व्याख्या की गई है कि धर्म सबसे उत्कृष्ट मंगल है। दुनिया के सभी प्राणियों को मंगल अभिष्ट होता है। उसके लिए मानव प्रयास भी करता है। प्रवेश व प्रस्थान के लिए मुहूर्त देखा जाता है। मंगलपाठ का श्रवण भी हमारे यहां सुना जाता है। मंगलभावना भी की जाती है। विदा लेने के लिए मंगलभावना समारोह होता है। बताया गया कि जिस आदमी के पास धर्म है, उसके साथ स्वतः मंगल होता है। चतुर्मासकाल के दौरान चार महीनों के लिए चारित्रात्माएं एक स्थान पर स्थित हो जाते हैं। चतुर्मास में काफी धर्माराधना होती है। चतुर्मास में कितने लोग तपः आराधना-साधना करते हैं। धर्म के तीन आयाम-अहिंसा, संयम और तप। ये तीनों ही मंगल हैं।प्रवचन करना भी अपने आप में तप है। यह सेवा का कार्य भी हो सकता है। वर्ष 2023 और वर्ष 2025 में हमारा आना हो गया। साधु-साध्वियां जहां भी रहें दिन में एक बार प्रवचन का प्रयास अवश्य रखना चाहिए। इसमें श्रम की ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। चतुर्मास में प्रवचन के साथ-साथ तपस्या आदि का क्रम भी चलता है। आदमी को समय-समय पर प्रेरणा मिलती है तो आदमी जागरूक भी हो सकता है। विहार करना है तो हमारे सभी चारित्रात्माएं मार्ग में चलते समय जागरूकता रखने का प्रयास करना चाहिए। नवदीक्षित साधु-साध्वियों व समणियों को भी विशेष ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए। आज कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी है। साधु जीवन में प्रतिक्रमण अच्छा होना चाहिए। प्रतिलेखना भी अच्छी होनी चाहिए। चलते समय ईर्या समिति का ध्यान रखना चाहिए। साधु का जीवन धर्ममय होना चाहिए। चतुर्मासकाल की सम्पन्नता अब निकट है। यहां आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने चतुर्मास किया था अब हमारा चतुर्मास हो गया। व्यवस्था समिति का कितना काम होता है। कितने-कितने कार्यकर्ताओं को इसमें लगना होता है। यह बहुत महत्त्वपूर्ण सेवा का कार्य है। कितने लोगों ने इस कार्य में अपने समय का नियोजन किया है। यह चतुर्मास काफी अच्छे ढंग से अब सम्पन्नता की ओर है।साध्वीप्रमुखाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री ने चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी के क्रम को संपादित करते हुए चारित्रात्माओं को और भी अनेक प्रेरणाएं प्रदान की। नवदीक्षित साध्वियां- साध्वी भावनाप्रभाजी, साध्वी मंथनप्रभाजी, साध्वी कल्याणप्रभाजी, साध्वी ऋतंभराप्रभाजी व साध्वी रहस्यप्रभाजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने पांचों साध्वियों को दो-दो कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र उच्चरित किया।मुनिश्री चौथमुनिजी द्वारा रचित कालू कौमुदी की हिन्दी व्याख्या समणी हिमप्रज्ञाजी द्वारा की गई है। इसकी दो पुस्तक को जैन विश्व भारती द्वारा आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में मंगल प्रेरणा प्रदान की। साध्वी सरस्वतीजी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी।मंगलभावना समारोह के द्वितीय चरण में प्रवास व्यवस्था समिति की सहमंत्री श्रीमती लाड बाफना, श्री सागर सालेचा, श्री मुकेश गुगलिया, श्री कुन्दनमल बाफना, श्रीमती रेखा धूपिया, श्रीमती कमलादेवी हिरण, श्रीमती मीना कोठारी, श्रीमती नीतू बैद, श्री सुनील बोहरा, श्री पवन अग्रवाल, श्री ज्ञानचंद नौलखा, श्री ललित सालेचा, श्रीमती उर्मिलाबेन मेहता, श्रीमती कंचन बाफना, श्रीमती मोनिका मेहता, श्री संजय दुगड़, श्रीमती ऋद्धि मेहता, श्री अरविंद दोसी, श्रीमती पिंकी खाब्या, तन्वी गांधी मेहता, श्री अरविंद दुगड़, श्रीमती नीलम दक व श्री महावीर चौपड़ा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। बालक पार्थ महनोत ने अपनी बाल सुलभ प्रस्तुति दी। तेरापंथ युवक परिषद-अहमदाबाद व तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम-अहमदाबाद के सदस्यों ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया।

