
सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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कोबा, अहमदाबाद (गुजरात),जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में आज जैन विश्व भारती मान्य विश्व विद्यालय, लाडनूं का 16 वां दीक्षांत समारोह आयोजित हुआ। जिसमें 3700 विद्यार्थियों को पीएचडी सहित विभिन्न डिग्रियां प्रदान की गई। विश्व विद्यालय के अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी की सन्निधि में कुलपति प्रो. बच्छराज दुगड़ ने समारोह की अध्यक्षता की इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत विशेष रूप से उपस्थित थे।मंगल प्रवचन में आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि विनीत एवं अविनीत दो तरह के लोग होते हैं। विनीत को संपति व अविनीत को विपत्ति प्राप्त होती हैं। विनीत वह होता है, जो अनुशासित हो व अपने पर अपना नियंत्रण रखता हो तथा अविनीत वह होता है जो अनुशासन हीन हो व मनमानी करता हो। दूसरे पर अनुशासन करने से पहले स्वयं पर अनुशासन जरूरी है। निज पर शासन, फिर अनुशासन। पहले हम आत्मानुशासी बनें। सबसे पहले हम मन, वचन, शरीर तथा इंद्रियों को अनुशासित बनाएं। बोलने से पहले क्या, क्यों और कैसे बोला जाएं इस पर विचार करें। जो भी बोलें उसमें परिमित भाषिता के साथ मृदुभाषिता रहे। इंद्रियों पर अनुशासन का अर्थ है कि आँख से बुरा मत देखो, कान से बुरा मत सुनो, मुख से बुरा मत बोलो तथा मस्तिष्क से बुरा मत सोचो। अच्छा बोलना, अच्छा सुनना, अच्छा देखना अच्छा सोचना हमारे जीवन को सही दिशा देता है। हमें विनीत तथा इमानदार बने रहना चाहिए व अनुशासन व आत्मानुशान को प्रधानता देनी चाहिए।गुरुदेव ने आगे फरमाया कि विद्या जीवन के लिए महत्वपूर्ण तत्व होता है। लर्निंग फॉर अर्निंग एक लक्ष्य हो सकता है, किन्तु सिर्फ यही एक लक्ष्य ना रहे। पर केवल यही लक्ष्य ना रहे विद्या के द्वारा दूसरों की धार्मिक सेवा कर सके। दूसरों का समाधान कर सके ऐसा प्रयास होना चाहिए। ज्ञान से समस्या को पैदा भी किया जा सकता है तो समाधान भी किया जा सकता है। आज जिन्होंने डिग्रियां प्राप्त की है यह भी जीवन की एक उपलब्धि है। जीवन में हमेशा नया ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करते रहने चाहिए। ज्ञान के साथ संयम जुड़ा हुआ रहे।केन्द्रीय मंत्री शेखावत ने भारत में विद्यमान सहिष्णुता के भाव को महान बताया और कहा कि इसी कारण हमारी संस्कृति विश्व में अब भी कायम है। उन्होंने जैन दर्शन के अनेकांत, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, संयम व प्रेक्षा के विचारों को सबके लिए आदर्श बताते हुए उनको अपने जीवन में उतारने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्होंने सभी विद्यार्थियों से सत्यव्रत, अहिंसाव्रत और सेवाव्रत की त्रय-प्रतिज्ञाएं भी करवाई।
विश्व विद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दुगड़ ने संस्थान का प्रगति प्रतिवेदन एवं स्वागत वक्तव्य दिया। प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी एवं राजेश ओझा ने मंच संचालन किया।

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