सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
Key Line Times
धनसुरा, अरवल्ली (गुजरात) ,भारत में मानसून की सक्रियता जैसे-जैसे बढ़ती जा रही है, धरती पर हरियाली बढ़ती जा रही है। आसमान से होने वाली वर्षा कृषकों हर्षा रही है और उनके खेतों को हरा-भरा बना रही है। आसमान से होने वाली वर्षा तो यदा-कदा रुक भी जाती है, किन्तु जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की अमृतवर्षा निरंतर प्रवाहित हो रही है। आचार्यश्री की अमृतवर्षा से वर्तमान समय में गुजरात जिले का अरवल्ली जिला तृप्ति को प्राप्त कर रहा है।शुक्रवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में युगप्रधान आचार्यश्री महारमणजी ने उजलेश्वर से अगले गंतव्य की ओर गतिमान हुए। आज भी मार्ग में अनेक गांव के ग्रामीणों को आचार्यश्री के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आसमान में गति करते बादलों के कारण सूर्य अदृश्य था, इसलिए उसके आतप से भी राहगीरों को राहत मिल रही थी। हालांकि आज का विहार अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ कम ही था। लगभग सात किलोमीटर का विहार कर महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी धनसुरा में स्थित आर्ट एण्ड कॉमर्स कॉलेज परिसर में पधारे। कॉलेज परिसर से संबंधित लोगों को आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।कॉलेज परिसर में आयोजित दैनिक मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी अपने जीवन में कितना समय धन के लिए लगाता है और कितना समय धर्म के लिए लगाता है। चार चीजें बताई गई हैं- अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष। इन चार चीजों में अथ भी है अर्थात् आदमी को जीवन में धन भी चाहिए तो धर्म की भी आवश्यकता होती है। गृहस्थ अपने जीवन में ध्यान दे कि कितना समय वह धन के लिए देता है और कितना समय धर्म के लिए देता है? आज हमारा धनसुरा गांव में आना हुआ है। वैसे तो यह संज्ञा है, किन्तु संज्ञा का विश्लेषण भी हो सकता है। धन और सुरा अर्थात मदिरा। मदिरा को तो व्यसन कहा गया है। पांच प्रकार के व्यसनों का वर्णन किया गया है। गृहस्थ को अपने जीवन में देखना चाहिए कि धन उसके पास हो तो कहीं उसका धन मदिरा में न जाए। सुरा एक अर्थ सुर अर्थात् देवता होते हैं। धनसुरा अर्थात् धन के देवता। आदमी को अपने जीवन में धन के लिए भी प्रयास करना होता है। धन अपेक्षित होता है तो उसके साथ आदमी अपने धर्म को भी भूले नहीं। सुरा को शूरवीर के अर्थ में ले सकता है। कोई धन कमाने में बहुत शूरवीर होता है।आदमी की भीतरी आभा भी चमकदार रहे। इसके लिए आदमी को धन के साथ धर्म भी होना चाहिए। जीवन में धर्म होता है तो जीवन की आभा चमकिली नजर आती है। गृहस्थ जीवन में अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष की बात है तो आदमी को मोक्ष के लिए भी पुरुषार्थ करना चाहिए। धनसुरा के लोग ही नहीं, बल्कि सभी धन में ही नहीं, धर्म में भी शूरवीर बने रहें। अपने जीवन में धर्म की साधना चलाने का प्रयास करना चाहिए। अणुव्रत जिस आदमी के जीवन में आ जाता है, उसे मान लेना चाहिए कि एक संदर्भ में उसके जीवन में धर्म आ गया है। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियमों का पालन कर लेने से भी जीवन में धर्म का प्रभाव रह सकता है। विद्यार्थियों में विभिन्न विषयों के ज्ञान के साथ-साथ ईमानदारी और नैतिकता के संस्कार दिए जाएं तो विद्यार्थी धनशूर ही नहीं अधर्मविजेता बन सकते हैं।पढ़ने से केवल पुस्तकीय ज्ञान ही नहीं, विद्यार्थियों को स्कूल द्वारा ही प्राप्त होता रहे तो आगे जाकर विद्यार्थियों का जीवन कितना अच्छा हो सकता है। आदमी के जीवन में धनशूरता ही नहीं धर्मशूरता का भी विकास हो। आदमी धर्मशूर बनने का प्रयास करे, यह काम्य है।आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी धनसुरावासियों को उद्बोधित किया। आचार्यश्री के स्वागत में स्थानीय महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। आर्ट एण्ड कॉमर्स कॉलेज के ट्रस्टी तथा गुजरात भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष श्री अतुल ब्रह्मभट ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्री धु्रव ढेलड़िया, सुश्री तिसा ढेलड़िया व सुश्री खुशी ढेलड़िया ने अपनी अभिव्यक्ति दी। कॉलेज के सेक्रेट्री श्री अनिलभाई पटेल ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी।